कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रत्न | Kundkundacharya Ke Teen Ratn

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Kundkundacharya Ke Teen Ratn by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोदुघात १७ हो गया है । स्कन्द अर्थात्‌ कातिकेय शिवके कुमार थे । अतएव इन दोनों नामोमे कोई खास भेद नहीं रहता । पत्लवोकी राजधघानी कोजीपुर थी भौर वे विद्या तथा दिद्वानोके भाश्रयदाता थे, ऐसी उनकी ख्याति है। इसके अतिरिक्त कोजीपुरमुके शिवस्कन्द वर्मा राजाका एक दानपत्र मिलता हैं । चह प्राइत्तमापामे है और उसके आरम्भमे 'सिद्धम बब्द है । इससे वह राजा जैन था, यह कल्पना की जा सकती है । इसके सिवाय जन्य अनेक प्रमाणोंते सिद्ध किया जा सकता हैं कि उसके दरवारकी भाषा प्राकृत थी । अतएव कुन्दकुन्दाचार्यने उस राजाकें लिए अपना ग्रन्थ लिखा हैं, यह माना जा सकता है । पल्लवराजाभोकी बंशावली मिलती तो है, फिर भी यह निष्चित नहीं कि किवकुमार किस समय हुआ है । अतएव कुन्दकुन्दाचार्यका कारूनिर्णय करनेमें इस तरफसे हमे कोई सहायता नहीं मिलती । परन्तु इतना तो अवब्य कहा जा सकता हूँ कि बहुत सम्भव है, पत्लववंशका कोई राजा कुन्दकुन्दाचार्यका दिष्य रहा होगा । श्रीकुन्दकुच्दाचार्यके नाम कुन्दकुन्दाचार्यके दुसरे नामोके विपयमें बहुत-से उल्लेख मिलते है; भर उन नामोंके भाधारपर उनके कालनिर्णयमे कोई सहायता मिल सकती है या नहीं, यह भव देखना चाहिए । 'पंचास्तिक्राय' की टीकामें जयसेनका कहना हैं कि कुन्दकुन्दका दुसरा नाम पद्मनन्दी था । परन्तु चौदहवी नताव्दीके पीछेके लेखोमे कुन्दकुन्दके पाँच नामोका वर्णन आता है । जैसे विजयनगरके ई० स० १३८६ के एक थिलालेखमे उनके पाँच नाम इस तरह दिये गये है - पद्मनन्दी, कुन्दकुन्द, वक्रग्नीव, एलाचार्य और गुघ्रपिच्छ । इनमे-से यह तो बहुत अंशोमें निविवाद हैं कि कुन्दकुन्दाचार्यका दूसरा नाम पद्मनन्दी था । इसी प्रकार यह भी निविवाद हू कि वक़प्रीव और गृघ्रपिच्छ, यह दोनो नाम उनके नहीं है, भूलसे उनके मान लिये गये है। गृध्नपिच्छ तो तत्त्वार्थसुत्रके रचयिता




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