जीवन - शोधन १ | Jivansodhan 1

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Jivansodhan 1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ ५. सगुण ब्रह्म > झुपासनाके छिग्े जु७०दि मनुष्यके तीन अचल विद्वास ५७५ श्रेयार्थीकी प्रतीतियाँ ५८-५९ प्रमात्माकी विभूत्तियोंका चिंतन ५९-६२; श्रेयार्थीके योग्य परमात्माका चित्तन ६९ । ' ६. सपुण ब्रह्म >> भक्तिके छिअे ६३-६७ परमात्म-चितनके झुद्देदय; झुप्त दृष्टिते परमात्मकि विशेषण ६३-६५; समपेण विचार ६५; परमात्मक्ति भाठम्वनका फल द.६-६७ । ७. परमात्माकी साधना -- ६७०७८ “शान, भक्ति भौर क्मकी चर्चाके सात पक्ष ६७-६८; ज्ञान- मावना-कमैका चक्र ६९-७०; भावनाओंकि अलुशीलनके सम्बन्धों दो पक्ष : गुणात्मक भक्तिमाग, अवरथात्मक ज्ञानमागे ७०-७२; भावनाभोंका झुचित रोतिसे भनुशीलन मनुष्यके विक्ासक्रमकी मेक भनिवाये सीढी; शानसे कम तकका चक्र ७४; भेक चद्रके खतम होनेपर नये चक्रका आरम्भ ७५; आख़िरमें आत्मस्वरूपका निदचय, थझुतके बाद तर्वात्मभावी मावनाओोंकी जायति और तदलुरूप कमेयीग ७६; मिस कमेयोगकी पूणता पर कल्पलीय नेष्कम्ये या निमुग सिद्धि-सम्बन्धी स्थिति; श्रेयार्थीका कतेव्य मारे ७६५; साचिक ज्ञानकी प्राप्ति: सात्विक भावनाओंका पोषण गौर कै त्विक काम करनेमें छुशल्ताकी प्राप्ति ७७-७८ अताव्साकी साधना -- २ ७८-८० है. परमात्मकि साथ अनुसन्थानके कुछ स्थूल प्रकार; जिसके हमें विचारने जैसी कुछ सामान्य बातें; भेकाकी चिन्तन ७८; 'त्सग, खानगी अनुज्ञीलन, सामाजिक भनुशीलन, प्रत्येक क्रियके ताथ मनुसन्वान; भेक तथमें श्रद्धा” ७९ । श्रद्धायुक्त नास्तिकता ८०-८६ सापनाके. स्यूल प्रकारोंके भुपयोगमें 'विवेककी जरूरत; काल्पनिक देवी-देवता ८०; भ्रेक भीदवरकी झुपासना -- अनन्याश्रय ८२; मृर्तिके झुपयोगकी मर्यादा; मन्दिर-मतजिद जैसे स्थानोंको झुपयोगिता व मर्यादा ८३; ज्ञानेरवर द्वारा श्रद्धायुक्त सास्तिकताका व्णन ८३-८४; मेक ही देवको माननेवालोंकी श्रद्धायुवत नास्तिकता - झुतकी भूमिका ८४-८६ ।




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