धर्म - नीति | Dharm-neeti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नीति-धर्मं
उसे खबर दी कि लड़ाई जीत छी नई इस सूचनापर
पेम्ब्रोक बोठ उठा, “अर्वितॉपिशि/ हाथ भलूमनसी
नहीं बरती । मुक्त जो मान मिलता वह आपने मैं.
हाथसे छीन लिया; मुक्ते लड़ाईमें शामिल होनेको
बुलाया तो फिर मेरे पहुंचनेके पहले लड़ाई न लड़नी
थी ।” इस प्रकार नीतिमागंमें जब किसीको जिम्मेदारी
छेनेका हौसला हो तभी वह उस रास्तेपर चल सकेगा ।
खुदा या इंश्वर सर्वशक्तिमान् है, संपूर्ण है, उसके
बड़प्पन, उसकी दया, उसके न्यायकी सीमा नही है ।
अगर ऐसी बात है तो हम लोग जो उसके बंदे समझें
जाते हे, नीतिमार्गको कैसे छोड़ सकते हें ? नीतिका
आचरण करनेवाला विफल हो तो इसमें कुछ नीतिका
दोष नहीं हू, बल्कि जो लोग नीति भंग करते हैं वे ही
अपने आपको दोषभाजन बनाते हैं ।
नीतिमारगंमें नीतिंका पालन करके उसका प्रति-
फल प्राप्त करनेकी बात आती ही नहीं । मनुष्य
कोई भा काम करता हूं तो शञाबाशी पानेंके, लिए «
नहीं, वल्कि इसलिए कि भलाई किए बिना उससे
रहा नहीं जाता । खूराक और भलाई दोनोंकी तुलना
करने पर भलाई ऊंचे प्रकारका आहार सिद्ध होगी
और कोई दूसरा आदमी भलाई करनेका अवसर
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