अष्टोपनिषद | Ashtopnishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ सावाधा-शथीरपुरुपी ने कार्य्य झोर फीस्ण फा मिर५ फल चर्शन किया है। यधा-कऋार्य को उपासना से संसार में झासक्ति झोर कारण को उपासना से झनात्मचाद को पंद्धि होती हु ॥ १३ ॥ ः सम्धात थे विनाश च यस्लद्वेदोयथ सह य विनाशेन सत्युं तीर्वों सम्भूत्याउ्सूतमश्वते ॥१४॥ * चदार्थ:---य४) जो पुरुष ( सम्सूतिम्‌ ) सम्भूति को (व) शीर ( चिनाशं, या) असभ्मूति फो सी ( सु, उमयम ] इन दौनोी को [सह] साथ र चिद] जानतां है [ सः ] चंद [चिना- शेन ] शसस्मुति से [ सत्यम ] मौत को [ तीत्वां | तरफर [. सम्मुस्वा ] सम्मुत्ति से [ झम्तम 2 मोक्ष को [ झपचुतति 3 भास दोता है ॥ शै४ ॥ ं म भावार्थ:-जो मज्लुप्य फायें घर कारण को साथ २ ज्ञानते श्र्वाद्‌_काग्ण से कार्य प्टी उत्पत्ति. झौर कार्य से कारण, ष्टी सफलता, समझते दे। चह कारण के घान से सत्यु को तरकर: कायें के शान से जीवन्सुक्त होजाते हैं। सत्य या चिनाश कया है १ कार्य का झंपने कारण में हीन हो .लाना चस जो थह संमक लेगा कि कार्य'पएक दिन झपने कारण से डाचश्यमेच लीन होगा, उसको मुस्यु फा भय फ्या ? . यद्दा, जो पुरूर अर््मा को विनाश अर उत्पस्सि से ( जो कार्य और व्ारण के चरम हैं ) प्थकू जानतां है; चढ़ मुत्यु को जीत . कर मोच्त, का डाधिकारी बनता दे ॥ रु 0. हिररससन,: पासेण -सत्यस्पापिह्ित सुखम । तच्च प्रचन्नपादरु सत्पघसाय रुछये ॥ २४१]




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