अष्टोपनिषद | Ashtopnishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
11 MB
कुल पृष्ठ :
404
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६
सावाधा-शथीरपुरुपी ने कार्य्य झोर फीस्ण फा मिर५ फल
चर्शन किया है। यधा-कऋार्य को उपासना से संसार में
झासक्ति झोर कारण को उपासना से झनात्मचाद को पंद्धि
होती हु ॥ १३ ॥ ः
सम्धात थे विनाश च यस्लद्वेदोयथ सह य
विनाशेन सत्युं तीर्वों सम्भूत्याउ्सूतमश्वते ॥१४॥
* चदार्थ:---य४) जो पुरुष ( सम्सूतिम् ) सम्भूति को (व)
शीर ( चिनाशं, या) असभ्मूति फो सी ( सु, उमयम ] इन
दौनोी को [सह] साथ र चिद] जानतां है [ सः ] चंद [चिना-
शेन ] शसस्मुति से [ सत्यम ] मौत को [ तीत्वां | तरफर
[. सम्मुस्वा ] सम्मुत्ति से [ झम्तम 2 मोक्ष को [ झपचुतति 3
भास दोता है ॥ शै४ ॥ ं म
भावार्थ:-जो मज्लुप्य फायें घर कारण को साथ २ ज्ञानते
श्र्वाद्_काग्ण से कार्य प्टी उत्पत्ति. झौर कार्य से कारण, ष्टी
सफलता, समझते दे। चह कारण के घान से सत्यु को तरकर:
कायें के शान से जीवन्सुक्त होजाते हैं। सत्य या चिनाश कया
है १ कार्य का झंपने कारण में हीन हो .लाना चस जो थह
संमक लेगा कि कार्य'पएक दिन झपने कारण से डाचश्यमेच
लीन होगा, उसको मुस्यु फा भय फ्या ? . यद्दा, जो पुरूर
अर््मा को विनाश अर उत्पस्सि से ( जो कार्य और व्ारण के
चरम हैं ) प्थकू जानतां है; चढ़ मुत्यु को जीत . कर मोच्त, का
डाधिकारी बनता दे ॥ रु 0.
हिररससन,: पासेण -सत्यस्पापिह्ित सुखम ।
तच्च प्रचन्नपादरु सत्पघसाय रुछये ॥ २४१]
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