दयानन्द की विद्वत्ता | Dayanand Ki Vidvatta
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
374 KB
कुल पष्ठ :
22
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९७ )
पैरोंसें ंगर कर प्रसन्न कर रददी तो में छू मेरे ऊपर मन
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रूस हो जादो सेरे झत्िय पुन्न न हो ॥९०। जैसा श्माए
ने कद्ा चय्रकसों चन्रिय सेरा परत भले हो हो सेदि-
नपुन्न ऐसा न हो भाप सुकफे-यहं चरदें॥र१। सहानु त-
पर्ची च्छजीस्ो दया शाइ उन्होंने कहा दि ऐसा ही
होगा इसके चादू सत्यवतो ने. जसदृद्धि नासक प्रन्षको
लो सहपिं हुए हैं उत्पन्न किया ॥१२॥ शौर गाधिसकी
: घो यशु बाली स्त्री है चसने हे रास युचिछ्िर | न्नक्-
झाता ज्रूपि चिश्वासिन्नकों पद पिया ॥ १३ पे
कहां तो चेद्व्ा यद्द गीरद ' कि वेद मन्न्नोंसे स-
न्च्रित चरुखे शिनके पत्र नहीं होते थे उनके पनत्न दो
गये आर कहां यदस्सति जगछ २ पर झइलीसल शब्दोंयते
सरसार दभ्षकों ज़रा गौरसे उोचिये ।
:. इसके आगे यजुबद झध्या० रपसन्त्र0 3 में स्वामी
जो छापने रशिष्योंको शिक्षा दते हैं कि संघ सांपोंको
गुदासे पकड़ा करो शुरू हो .तो .रुवासो स्हेसा हो छौरैर
शिष्य हर ऐसे ही दों जैसे छमारे द्यानन्दी भादे स-
गररऐसे, घासिंक दुयानन्दी व्ूल हैं जो इस व्ताररवाई
को असतासें हाते नें *
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