आधुनिक कवि [भाग -१] | Adhunik Kavi [Bhag -1 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री रामप्रताप शास्त्री - Shri Ramprtap Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'नशिशेना
कया दे सका है यह अंभी कहना हनां कठिन होगा । इतना : निश्चित: है कि
इस वस्तुवादप्रधघान युग में भी वह-श्रनोत नहीं हुआ चाहे इसका
कारण मनुष्य की रहस्योन्मुंख प्रवृत्ति हो शरीर चाहे : उसकी लौकिक
रूंपकों में सुन्दरतंम ाभिव्यक्ति | ल
..... इस बुद्धिवाद के युग में मनुष्य मावंपक्त की सहांयंता, से, अपने
'जीवन.को कसने के लिए कोमल कसोटियाँ. क्यों प्रस्ठुत करे, भावना को
'साकारता के लिए; शंध्यात्म. की पीठिका क्यों . खोजता फिंरे श्रौर . फिर
'परोच्ष शध्यात्म को . प्रत्यक्त जगत में क्यों प्रतिष्ठित करें यह संभी प्र
सामयिंक हैं.।. पर इनका उत्तर केवल बुद्धि से दियां जा संकेगी ऐसा
सम्भव नहीं जान पेंड़ता, क्योंकि बुद्धि का प्रत्येक समाधान अपने साथ
_ प्रशनों की एक बड़ी संख्या उत्पन्न, कर लेता है ।
साधांरिंयुतः श्रन्य व्यक्तियों के समान ही कंबि की स्थिति मी:
प्रत्यित्त जगत ' की व्यष्टि और सम्टि, दोनों ही :में है ।.एक; में वह
अपनी इकाई में पूण हैं श्र दूसरी में वहें-अपनी इकीई से .वाह्म जगंत
की इकाई को पूंण करता है। उसके व्यन्तजगंत का. विकास: ऐसा
_ होना आवश्यक है जो उसके व्यष्टिगत जीवन .का विकास श्र परिष्कार
करता हुआ समष्टिंगत जीवन के साथ उसका सामंजस्य स्थापित कंर
दे । मनुष्य के: पास इसके लिंए केवल: दो ही-उंपाय हैं,-बुद्धि का विकास
तर भावसा को पंरिष्कारे | परन्तु: केवल बौद्धिक .निरूपश:: जीवन . कै
'. मूल तसवों की व्याख्या कंरे: -सकता- हैं, उनका परिष्कार नहीं. जो जीवंन
सर्वतोन्सुखी विकास. के लिए श्रपेक्षित है और: ' केवल भावना जीवन
की यतिं देःसकती है दिशा नहीं | हे की
_' मांवातिरेक को हस अपनी क्रियाशीलता कां एक विशिष्ट 'रूंपान्तर
मान सकते हैं जो एके ही'्षण में हमारे संम्पूण श्न्तजरत को “स्पश
कर वाद्य. जगत में द्रेपनी श्रभिव्यक्ति के लिए श्स्थिर- हो उठंतां है;
पर बुद्धि के दिशानिवंश “के श्रभाव -में “इस भावंय्वेगं के लिंएं अपनी
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