जैनेन्द्र की कहानियाँ भाग - 10 | Jainedar Ki Kahaniyan Bhag - 10

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Book Image : जैनेन्द्र की कहानियाँ भाग - 10  - Jainedar Ki Kahaniyan Bhag - 10

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनका निष्शेष १७ रहे, इससे कुछ फायदा है ? भाई श्रव पहले से बदल गए है ।”” शारदा ने कहा, “तुम्हारे भाई है--तुम्हारे पास नहीं रह सकते ? मै कौन रह गई हू जो यहा आयेंगे * मुरारी, तुम लोग उन्हे सभाल लो। उनका चौथापन है तो क्या मेरा नही है ? जाना तो मूृझे चाहिए था सहारे के लिए उनकी तरफ । वह चले भी जाए, तो उन्हें वया ? लेकिन मैं तो झ्रकेली नही हू श्र अपने बाल-वच्चो को जैसे वना मैंने सभाला है। नौकरी कर रही हू श्रौर जी रही हू । अ्रव मेरी शान्ति मे, मेहरवानी करें, विध्न न डालें । बच्चो के लिए भी मैंने उनकी तरफ नही देखा है। मैं जानती हु, ये पन्द्रह बरस कंसे कसाले के मेरे गए है । मैं तो तुम लोगो के घर से निकली हुई हु । फिर मुझे क्यो पूछा जाता है ? उनसे कह देना, सब ठीक है । यहा श्राने की, तकलीफ उठाने की कोई जरूरत नही है ।” “भाभी, इतना कठोर नहीं होना चाहिए ।” “तुम भी सुझते दोष दोगे मुरारी ? तो कठोर ही सही । मैं श्रपनी विपदा लेकर तो किसी के यहा नही गई । बस, इतना करो तुम लोग कि मेहरवानी करो । श्रीर जेसे छोडा है, वैसे ही मुझे अपनी किस्मत पर छूटी रहने दो । मैं और कुछ नही मागती हु ।” “तो भाभी, सच यह है कि भाई साहव नीचे ही खडे है 1” “नीचे 7” “कुछ उन्हे थी शिकक थी । कुछ मैने भी कहा कि जरा देखे श्राता हु “तो उन्हे नीचे ही से ले जाश्नो । देखो, मेरा दिन न खराव करो ।” लेकिन शारदा को नही मालूम था । उसकी पीठ थी दरवाजे की तरफ । पर मुरारी ने श्रपने भाई रामशरण को भकाकते वहा देख लिया था भर इशारा कर दिया था कि झाए नही, ठहरे । बहू वबोला--“उनकी नौकरी छूट गई है भाभी !. महीने भर से पुप्कर में थे । सोचो तुम्ही कि कहा जाएगे * मेरे पास कव तक रह सकते




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