जैनेन्द्र की कहानियाँ भाग - 10 | Jainedar Ki Kahaniyan Bhag - 10
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उनका
निष्शेष १७
रहे, इससे कुछ फायदा है ? भाई श्रव पहले से बदल गए है ।””
शारदा ने कहा, “तुम्हारे भाई है--तुम्हारे पास नहीं रह सकते ?
मै कौन रह गई हू जो यहा आयेंगे * मुरारी, तुम लोग उन्हे सभाल लो।
उनका चौथापन है तो क्या मेरा नही है ? जाना तो मूृझे चाहिए था
सहारे के लिए उनकी तरफ । वह चले भी जाए, तो उन्हें वया ? लेकिन
मैं तो झ्रकेली नही हू श्र अपने बाल-वच्चो को जैसे वना मैंने सभाला
है। नौकरी कर रही हू श्रौर जी रही हू । अ्रव मेरी शान्ति मे, मेहरवानी
करें, विध्न न डालें । बच्चो के लिए भी मैंने उनकी तरफ नही देखा
है। मैं जानती हु, ये पन्द्रह बरस कंसे कसाले के मेरे गए है । मैं तो
तुम लोगो के घर से निकली हुई हु । फिर मुझे क्यो पूछा जाता है ?
उनसे कह देना, सब ठीक है । यहा श्राने की, तकलीफ उठाने की कोई
जरूरत नही है ।”
“भाभी, इतना कठोर नहीं होना चाहिए ।”
“तुम भी सुझते दोष दोगे मुरारी ? तो कठोर ही सही । मैं श्रपनी
विपदा लेकर तो किसी के यहा नही गई । बस, इतना करो तुम लोग कि
मेहरवानी करो । श्रीर जेसे छोडा है, वैसे ही मुझे अपनी किस्मत पर
छूटी रहने दो । मैं और कुछ नही मागती हु ।”
“तो भाभी, सच यह है कि भाई साहव नीचे ही खडे है 1”
“नीचे 7”
“कुछ उन्हे थी शिकक थी । कुछ मैने भी कहा कि जरा देखे श्राता
हु
“तो उन्हे नीचे ही से ले जाश्नो । देखो, मेरा दिन न खराव करो ।”
लेकिन शारदा को नही मालूम था । उसकी पीठ थी दरवाजे की
तरफ । पर मुरारी ने श्रपने भाई रामशरण को भकाकते वहा देख लिया
था भर इशारा कर दिया था कि झाए नही, ठहरे ।
बहू वबोला--“उनकी नौकरी छूट गई है भाभी !. महीने भर से
पुप्कर में थे । सोचो तुम्ही कि कहा जाएगे * मेरे पास कव तक रह सकते
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