संयोगिता | Sanyogita

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Sanyogita by मायादत्त नैथानी - Mayadatt Naithani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हब ] पहला' अंक ही जप पापा था का न ले जि सह अल साफ [ सुनन्दाका प्रदेश सुनन्दा--अज उदास क्यो हो राजकुमारी * संयो ०--मैं सोचती हूँ बहिन कि-- सुनन्दा--क्या सोचती हो 2 सयो०--कि इस ससारम कोई प्रासी सुखी भी होंगा * सुनन्दा--सुखी तो वहीं होगे राजकुमारी, जो कि मायावी इच्छाओके जालमें न फंसे हो । सयो०--पर इच्छाओके जालमे न फैँसनेकी भी तो एक इच्छा ही है बहिन ' सुनन्दा--परतु इच्छायें भी तो दो प्रकारकी होती हैं राजकुमारी, -झच्छी ओर बुरी । अच्छी इच्छाएँ मनुष्यके जीवनका विकास करती हैं ओर बुरी डष्छाएँ या वासनाएँ उसका पतन । * मायावी इच्छाओ से मेरा मतलब उन्ही वासनाओसे है जो कि उसके हृदय कभी तृप न होनेवाली ठृप्शाको उकसा कर उसे झअणात बना देती है और प्यासे ग्गफी तरह उसे इस विकट मरु-भूमिमें तब तक तड़पाती रहती है जब तक कि उसका विनारा नहीं हो जाता । सयो०--परन्तु, मच्छी और बुरी इच्छाओकी कसौटी कया है 2 सुनन्दा--जो जीवनकों उत्यानकी ओर ले जाती हैं अच्छी हैं और जो पतनकी ओर वे बुरी । जिस कार्यके करनेसे जीवनकों चेतना मिलती है और श्रात्माकों आनन्द, उस कार्यको हम श्रच्छा कहते है और उसकी इच्छाको अच्छी । नीतिशाख्रोमें उसे दी कर्चव्य माना है । संयो ०--( व्याकुल दृष्टिमे सुनन्दाकी ओर देखते हुए ) बहिन,




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