संयोगिता | Sanyogita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
91
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हब ] पहला' अंक ही
जप पापा था का न ले जि सह अल साफ
[ सुनन्दाका प्रदेश
सुनन्दा--अज उदास क्यो हो राजकुमारी *
संयो ०--मैं सोचती हूँ बहिन कि--
सुनन्दा--क्या सोचती हो 2
सयो०--कि इस ससारम कोई प्रासी सुखी भी होंगा *
सुनन्दा--सुखी तो वहीं होगे राजकुमारी, जो कि मायावी
इच्छाओके जालमें न फंसे हो ।
सयो०--पर इच्छाओके जालमे न फैँसनेकी भी तो एक इच्छा ही
है बहिन '
सुनन्दा--परतु इच्छायें भी तो दो प्रकारकी होती हैं राजकुमारी,
-झच्छी ओर बुरी । अच्छी इच्छाएँ मनुष्यके जीवनका विकास
करती हैं ओर बुरी डष्छाएँ या वासनाएँ उसका पतन । * मायावी
इच्छाओ से मेरा मतलब उन्ही वासनाओसे है जो कि उसके हृदय
कभी तृप न होनेवाली ठृप्शाको उकसा कर उसे झअणात बना देती
है और प्यासे ग्गफी तरह उसे इस विकट मरु-भूमिमें तब तक
तड़पाती रहती है जब तक कि उसका विनारा नहीं हो जाता ।
सयो०--परन्तु, मच्छी और बुरी इच्छाओकी कसौटी कया है 2
सुनन्दा--जो जीवनकों उत्यानकी ओर ले जाती हैं अच्छी हैं
और जो पतनकी ओर वे बुरी । जिस कार्यके करनेसे जीवनकों
चेतना मिलती है और श्रात्माकों आनन्द, उस कार्यको हम श्रच्छा
कहते है और उसकी इच्छाको अच्छी । नीतिशाख्रोमें उसे दी कर्चव्य
माना है ।
संयो ०--( व्याकुल दृष्टिमे सुनन्दाकी ओर देखते हुए ) बहिन,
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