शुध्दिप्रभाकर | Suddhi Prabhaakar
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूबोधेम ।। ९,
जघन्य॑ जघन्य॑ वण मापद्यते जातिपरिवृत्तो ॥
अपस्तम्भ २०-५-११
भधे:-धघमोचरणसे निकृष्ठ वर्ण अपने से उत्तम बर्णकों प्राप्त दोता
है बार अधमाचरण से श्रेष्ठ वण भी नीच बन जाता है ॥|
योन धित्य द्विजो वेद अन्यत्र कुरुते श्रमम् ॥
सजीवन्नेव शूद्रतववं आशुगच्छति सान्व यम । भा०२-१६
अर्थ-जो विप्र वेद का न पढकर अन्यत्र श्रम करता है वह ब्राह्मण
वेश सहित जौता ही दयद्र हो जाता है वसिप्रजीका भी यही मत है
महाभारत बन पत्रे अध्याय २१६ माह भा० शां० अध्याय १६ ||
यस्तु शद्रो दमे सत्वे धर्मेंच सततोस्थितः- त॑
ब्राह्मणमहंमन्ये वृत्ते नहि भत्रे द्विजः-दाद्रे चेत-
डवेलक्ष॑ द्विजेतन्न न विद्यते । नैव गद्रो भवे
च्छूद्रो आाह्मणो नच जह्मणः ।
अधे-जो शूद्र धमाचरण करता है वो ब्राह्मण के समान है जो
न्राह्मण भधर्माचरण करता है वो शूद्रक समान है ।
वर्णों वृणोत्ति नि अ* २९ खें० ३
भधे-वर्ण इसछिये कहा जाता ६ उसे मनुष्प गुण कमे स्वभावसे
बनता है भारद्वाज मुनिने ऋगुजीसे पूंछा कि ज्राह्मण क्षत्रिय वैष्य भर झूद्र
कैसे बनते है ॥
भारद्वाज प्रश्न ।
बाह्मणाः केन भवाति क्षात्रियो वा द्विजोतम वैश्य
शूदश्र पि्रपें तद्वहि यदतां वर । मा शां०
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