शुध्दिप्रभाकर | Suddhi Prabhaakar

Suddhi Prabhaakar by नारायण लालजी - Narayan Lalji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूबोधेम ।। ९, जघन्य॑ जघन्य॑ वण मापद्यते जातिपरिवृत्तो ॥ अपस्तम्भ २०-५-११ भधे:-धघमोचरणसे निकृष्ठ वर्ण अपने से उत्तम बर्णकों प्राप्त दोता है बार अधमाचरण से श्रेष्ठ वण भी नीच बन जाता है ॥| योन धित्य द्विजो वेद अन्यत्र कुरुते श्रमम्‌ ॥ सजीवन्नेव शूद्रतववं आशुगच्छति सान्व यम । भा०२-१६ अर्थ-जो विप्र वेद का न पढकर अन्यत्र श्रम करता है वह ब्राह्मण वेश सहित जौता ही दयद्र हो जाता है वसिप्रजीका भी यही मत है महाभारत बन पत्रे अध्याय २१६ माह भा० शां० अध्याय १६ || यस्तु शद्रो दमे सत्वे धर्मेंच सततोस्थितः- त॑ ब्राह्मणमहंमन्ये वृत्ते नहि भत्रे द्विजः-दाद्रे चेत- डवेलक्ष॑ द्विजेतन्न न विद्यते । नैव गद्रो भवे च्छूद्रो आाह्मणो नच जह्मणः । अधे-जो शूद्र धमाचरण करता है वो ब्राह्मण के समान है जो न्राह्मण भधर्माचरण करता है वो शूद्रक समान है । वर्णों वृणोत्ति नि अ* २९ खें० ३ भधे-वर्ण इसछिये कहा जाता ६ उसे मनुष्प गुण कमे स्वभावसे बनता है भारद्वाज मुनिने ऋगुजीसे पूंछा कि ज्राह्मण क्षत्रिय वैष्य भर झूद्र कैसे बनते है ॥ भारद्वाज प्रश्न । बाह्मणाः केन भवाति क्षात्रियो वा द्विजोतम वैश्य शूदश्र पि्रपें तद्वहि यदतां वर । मा शां०




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