स्वातंत्रयोत्तर हिंदी उपन्यासों का शिल्प विधान | Svatanyotter Hindi Upanyaso Ka Shilp Vidhan

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Svatanyotter Hindi Upanyaso Ka Shilp Vidhan by पारसनाथ तिवारी - Parasnath Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मी ्ं के नि भी 'शिल्पनविधि मामा गया है । इस हप थे सर्जैक के लि जैसे कई सलियम या रो लिय। दो गई छोतो हैं,सक साका उपलब्ध होता है । बस उस खाके पर रचनाकार *उपन्यास सोच देता है । रेसा आभास होता है, जैसे एवनाकार को शिल्पनविधि की शिक्ष] दो जातो हो । शायद नियम,री लिया, और प्रविधिया उसे प्रदत्त न हो. तो वह कृति का निर्माण कर ही नहों सकता । कहना ने होगा, कृतिकार किसी ढाचे या नियमों से बधा महीं होता । न हो, उसे शिल्प-विधि को शिद्षा दो जा सकती है । प्रततिमा- शोल क्याकार अपनों प्रतिमा के दारा बुक विधियों और प्रधिधियों का गठन अवश्य कर गकता है, किन्तु थे विधिया और प्रविधिया उसको व्यक्तिगत चोज़ होगा । इतनों व्यक्तिगत नहीं जिसे कौई अन्य अपनाने का दावा ने करे । हुसो क्थाकार मो इन चिधियो का उपयोग कर सकते ट् न्पर बे इसके रछिए विवश मी है । कस प्रकार शिल्प चिंघि या शित्प-विधान कौ विभिन्न रोतियो, नियमों एवं प्रलिधियों का आक्टन मो नहीं कहा जा सकता । ऐसे प्रम का सकेत पा श्वस के सशक्त समोधषक मार्क शोरर में मो किया है, *उपस्यास विधा मे शिल्प,.., हम फिसो प्रकार यह मानकर चढ़ते हैं 1 इसका अभिप्राय केवल दो गई सामगय्रों का संगठन है । 'शिल्पनविधि या 'शिल्पनचविधान का सम्बन्ध बरस सुजन पद से है । उपन्यासकार के मा रिति बुत: उपन्यास के का में समाज की सच्चाइ्या ,आदमों की लत के्रह कॉपिए चमक पदक: .अमिद) सडक दि पाएगी पंडतिए पलाहिए बिक ंगव मैसदर जलितिनाया अंक्रीदि निवकि: फिस्यंद मद १. इस प्रकार ,साहित्यकार अपनों रचना के सुजन को प्राराम्मिक. अवस्था से लेकर इसे कलात्मक 5प प्रदान काने को अस्तिम अवरधा तक जिन माना प्रकार को विधियों ,रो लियो स्व प्रक्रियाजों को काम मे लाता है, वह सभी लिधिया और




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