गणित कक्षा ७ | Ganit Kaksha-7

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : गणित कक्षा ७  - Ganit Kaksha-7

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यु गणित 1.3 परिपेय संख्याओं की आवश्यकता कक्ना ॥ में, आपने कपल एक चर जाली सरल समीकरणों का हल सीखा था। पान लीजिए धारा समीकरण 2 - 4-0 है। हम देख सकते हैं कि पर्णाक 2 इस समीकरण का ?ल है। लॉफिन यदि हमाश समीकरण 2+ -3 0 है, तो कोई भी पूर्णक इस समीकरण का हल नहीं हो सकता। केवल पिन जन यू ही समीकरण को संतुष्ट करती है। अब मा के हरा समीकरण 2 + ८६ है। क्या कोई पूर्णाक या शिरत इस समीकरण का हल हो सकता है? नहीं। पूर्णाकों अथवा भिरनों से हस समीर का कोई हल नहीं है। एस प्रकार के समीकरणों के हल प्राप्त करने के लिए, हमें अपन संख्या निकायों (पूर्णक एवं भिन्न) का विस्तार करना पड़ेगा। पूर्णाकों के निकाय के जिस्तार सकी आनशयवाता को हम एक दूसो दृष्टिकोण से थी देख सफते हैं। संख्या रेखा पर -3 को द्शनि बाला बिंदु है । जिस प्रकार हमने 7 को 8 भागों में बाँटा था, उसी प्रकार, (9? को भी हम बिंदुर्जा 2 , हे आदि की सहायता से ४ भागों मे बॉट सकते हैं। यहाँ » बया निरूपत करता है? जिस प्रकार &, - निरूपित करत है, उसी 3 ं प्रकार, ... एप सिरूपित करता है । परंतु एप न तो पूर्णाक हैं आर न ही कोई भिन्न! अत: 1 [ड हक कि के... हा न न क हमें अपने संख्या निकाय के विस्तार की आवश्यकता है जिसमें ' भिन्न के समान पे जैसी संख्याएँ भी सस्मितितत हों 1.4 परिमेय संख्याएँ भिन्न टू में क एवं / धनात्मक पृर्णाक हाते हैं। थांद //ए/ ८ को हम कोई भी पूर्णाक लें तथा ५ शुन्येतर रहे, तो इस प्रकार प्राप। विस्तृत संख्या निकाय सें 3 3. 2 [ न्28 4 व -9' 1-25 100 मी हा मं कि लि संख पृ प् _ प्पिलि जे परत ज हि घ 1 १ ० 2 न्थ कर न में द्ै जैसी सभी संख्याएँ संम्मित्ति्त हैं, परंतु हा जेसी संख्याएँं, जिनके हर में शून्य है, सन्पिलित नहीं हैं। एक संख्या ज। डी के रूप में हो. जहाँ फ एवं ८ दो पूर्णाक हैं तथा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now