मिना | Mina

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Mina by डॉ मंगलदेव शास्त्री - Dr Mangal Shashtriलेसिंग - Lesing

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डॉ मंगलदेव शास्त्री - Dr Mangal Shashtri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८. ) विटनवग में शान्ति और स्वाध्याय का जीवन बर्लिन में कुछ दी समय रहने के बाद उसका मन वहाँ से उकता गया । उसने चाहा कि संपादकत्व आदि के काम से अब- काश लेकर कुछ दिनों शान्ति और स्वाध्याय का जीवन व्यतीत करे | इस विचार से वह विटनबग में अपने भाई के पास झा गया, और सन्‌ १७५१ को वहीं शान्ति के साथ स्वाध्याय में व्यतीत किया । यहाँ बद्द प्राचीन उत्कष्ट रोमन आदि साहित्य के पढ़ता रहा । साथ ही उसने कुछ समालोचनात्मक लेख भी निकाले । इन लेखों के प्रभाव से वह उस समय का सब से अधिक प्रसिद्ध और तीन्र समालोचक समझा जाने लगा | बर्लिन में लोटना १७५२ में व बर्लिन लौट झाया और “वोलिश ज्ञाइटुंग” नामक पत्रिका के संबंध में उसने अपना काम पुनः शुरू कर दिया । १७५३-१७५५ इ० में उसकी रचनाओं का संग्रह छः भागों में प्रकाशित हुआ । इससे स्पष्ट है कि इस समय तक उसके काफ़ी ख्याति मिल चुकी थी, और वह विभिन्न विषयों पर अनेक अर थ ओर लेख लिख चुका था । इस संग्रह में जो नाटक प्रकाशित हुए व उसके झपने समसामयिक गलेट ( ७1- € ) एलिआस श्लेगल ( 055 3०01626 ) आदि साहि- सत्यिक मित्रों की रचनाओं से कथा की तथा नाटकीय दृष्टि से विशिष्ट थे । तो भी उस के सुखांत नाटकों में तात्कालिक नाव्य-




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