संवाददाता : सत्ता और महत्ता | Samvadata Satta Aur Mahatta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संवाद की प्राचीनता और संवाददाता 3
समाचार प्राप्त किये जाते थे । इस स्थिति ने पड़ोस के गाँव्रों की ही नहीं, दूर-दूर के माँवो
की भी, अधिकाधिक दूसरी खबरें प्राप्त करने की इच्छा बढ़ा दी । अब खबरें प्राप्त करने के
उपायों का बढ़ना भी अनिवायें था ।
चुँकि पड़ोसी गाँव भी बहुत नजदीक-नजदीक महीं' होते थे, इसलिए आज की तरह
यह तो संभव नहीं था कि सभी, बारी-बारी से ही सही; आते-जाते रहते । जंसे आज भी किसी
शहर के बहुत-से लोग पड़ोस के शहर को भी यावज्जीवन बिना देखे रह जाते हैं, बसे ही उस
समय भी बहुत से लोग अनेक असुविधाओं के कारण अपने ही गाँव में सारी जिन्दगी बिता
देते होंगे । बस कुछ ही लोगों का आना-जाना अधिक हो पाता होगा । इन्हीं कुछ आने-जाने
वालों से पड़ोसी गाँवों की खबरें मिलती रहती थीं । ये खबरें मौखिक होती थीं । जिनकी
बुद्धि तथा स्मरणशक्ति जितनी तीव्र होती होगी, ने उतनी ही तीज्रता था कुशलता से समाचार
सुनाते' होंगे । ः
राजसत्ता का उदय होने पर समाचारों के प्रचार तथा प्रसार में और तीव्रता आनीं
ही थी, क्योंकि राज चलाते के लिए यह आवश्यक हो गया । राजतंत्र का मुख्य उद्देश्य था
कि दुसरे राज्यों की शाप्षकीय' मतियिधि का पता लगाया जाय--पड़ोसी शासक अपनी सीमा
बढ़ाने की कोई पोजना वो नहीं बना रहा है, उसकी सेना आक़रमण की तैयारी तो नहीं कर
रही है । इसी उद्देश्य के अन्तगंत यह जानने की भी कोशिश की जाती थी कि पड़ोसी राजाओं
की वास्तविक शक्ति क्या है, कितनी है और कौन-कौन से तथ्य अपने अनुकूल और प्रतिकूल
हैं। दूसरा सुख्य उद इय अपने ही राज्य के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना था--प्रजा में
कोई असंतोष तो नहीं बढ़ रहा है, कोई घ्तिद्रन्द्वी व्यक्ति तो नहीं है और है तो क्या निद्रोहे की
कोई तैयारी कर रहा है ।
किसी चीज था बात को सुष्टि के प्रारम्भ से, पौराशिकता से या प्रार्गतिहासिकता से
जोड़ने का प्रयास व्यथ या अर्वेज्ञानिक लग सकता है, किन्तु जहाँ से और जब से उसके प्रमाण
मिलते हों, वहाँ से भौर तब से तो उसकी ऐतिहासिकता का कुछ अनुमान लगाया ही जायगा ।
अतः जब से राजसंत्ता का उदय हुआ, तब से ऐतिहासिक प्रामाणिकता की छानबीन करके
यहाँ संवादों या समाचारों के सम्बन्ध में इतना कहना तो गलत नहीं होगा कि 'राजसत्ता का
उदय होने पर छक समाचार-प्रणाली विकसित होने लगी थी ।
राजसत्ता के विचार से हम समाचारों की प्राचीनता को यदि लाखों वर्ष पीछें नही ले
जा सकते तो हजारों वर्ष तक तो ले ही जा सकते हैं, क्योंकि राजसत्ता का उदय हजारों बे
पुर्व हो गया था । राजसत्ता की ऐतिहासिकता के ही विचार से पत्रकारिता के प्रसंग में हम
अब यहाँ दुसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि जबकि पत्र, फ्ल्कार और बद्रकारिता के
नाम कुछ सौ वर्षों के हैं संवाद या समाचार' नाम हजारों वष पुराना है...
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