विवेक या विनाश | Vivek Ya Vinash
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
बर्ट्रेड रसेल - Bartraid Rasel
No Information available about बर्ट्रेड रसेल - Bartraid Rasel
वीरेंद्र त्रिपाठी - Veerendra Tripathi
No Information available about वीरेंद्र त्रिपाठी - Veerendra Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ विवेक या विनाश
का डर है कि जब तक हम भ्रण्ने कगड़ों की वर्तमान भीषणता को कम नहीं कर
पाते तब तक श्रधिकांश दाव्तिशाली राष्ट्रों की जनता श्रौर उनके श्रनुयायी एक
दूसरे को नुकसान पहुँचाने का माध्यम ढूंढने की खातिर भूखे सरने की स्थिति भी
स्वीकार करने के लिए तैयार हो जायेंगे । €
हमारा ग्रह, पृथ्वी अपने वतंमान मागे पर चलता नहीं रह सकता । ऐसा युद्ध छिड़
सकता है जिसके परिणाम स्वरूप सब लोग या लगभग सब के सब नष्ट हो जायें ।
अगर लड़ाई न हुई तो श्राकाशीय ग्रहों पर अभियान होंगे प्रौर ऐसा हो सकता
है कि इस प्रकार के माध्यम तैयार कर लिए जायें जिनसे उनको छिनन-भिनन
किया जा सके । चांद फट जाय श्रौर गिर पड़े या पिघल ही जाए । मॉस्को या
वाशिंगटन या ऐसे कई क्षेत्रों पर जहरीले भ्रवकषेष गिर पढ़ें, जिनका 'युद्ध से कोई
भी नाता नहो । घुणणा आर नेस्तनावबूद करने वाली भावनायें झति व्याप्त होकर
. पागलपन को भूमि की वर्तमान सीमाओं से कहीं झ्रागे फैला देंगी । हालांकि मु;
इसमें संदेह है, पर मैं श्राशा करता हूँ कि राजनेताग्रों के दिमागों में सुवुद्धि की
भकलक चमकेगी । परन्तु सुबुद्धि के बिना शक्ति का विस्तार बहुत ही भयावह
है श्रौर में ऐसे लोगों को श्रधिक दोष नहीं देता जो इसके कारण निराश हो
जाते हू ।
परन्तु निराश होना बुद्धिमत्ता नहीं । मनुष्य में केवल भय श्रौर घुणा करने की
ही क्षमता नहीं, झाश्ञा और उपकार की क्षमता भी उसमें है । यदि संसार की जनता
पर यह स्पष्ट किया जा सके श्रौर इसकी कल्पना करायी जा सके कि किस प्रकार
एक श्रोर तो घुशा#प्रौर भय के फलस्वरूप नरक उनके सामने मुँह बाये' खड़ा
है झ्ौर दूसरी झ्ोर उसके मुकाबले नई दक्षताओं द्वारा श्राशा श्रौर उपकार के
स्वर्ग का निर्माता किया जा सकता है तो उनके लिए यह कुछ सुद्किल न होगा
किवेदौनों में किसे चुनें। श्रौर तब हमारा श्रात्म पीड़ित जीव-इंसान वह श्रानन्द
भोग सकेगा, जिसे उतने भूतकाल में कभी नहीं भोगा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...