नन्ददास | Nanddasah

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Nanddasah by भावानीदत्त उत्प्रेती - Bhawanidatt Utpreti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 पूर्ति को और प्रयास किया है । इसमें समाविष्ट आलॉचना का आधार पं०्उमार्शकर शुक्ल जो का 'नन्ददास' है । इस ग्रन्थ में सात शोषकों के अन्तर्गत-- जोवनो ५ रचना ४, नन्ददास काव्य में पुष््टिमाग के सिद्धान्त, नस्ददास का पदावली साहित्य नन्ददास को भक्ति, काठ आए कला तथा परिशिष्ट-- वत्लमाचार्य का शुद्वा दैत दईन जार पुर्टिमार्ग पर लेखनी उठाई है गई है । उन शोणकों के अन्तर्गत केवल मर परिचयात्मक दृष्टिकोण को हो कलक मिलती है बार नन्ददास के अध्ययन को उस शुक्ला में जी ढाए० गुप्त जो के अव्ययन के फलस्वउप सामने आई, कोई उत्लैसनीय विकास दाष्टिकोचर नहीं होता । के श्री प्रमुदयाल मोतल सनक, अवातं: बलों: जीती एकल भला, आदि, सबेधा मतों: (लए पहल. सकल, विवि लफाकं न्यगों:..जाहोलिं ड्ट डा० मटनागर के इपरान्त ली प्रमुदयाल मीतल प्रमुख आलाॉचक हैं, जिन्होंने अष्टकाप परिचय” नामक ग्रम्थ मैं अन्य अष्टकापी कवियाँ के साथ नन्ददास के विषय में मी विचार प्रस्तुत किस हैं । मीतल जो ने “जोवन सामग्री आए उसकी आलॉचना” जावनो” जार “काव्यसंग्रह नामक शो लकी के अन्तर्गत कवि को चर्चा को हैं 1* सूए- दास आर पएमानन्ददास के पश्चात अष्टक्वाप में नम्ददास की सर्वश्रेष्ठ कवि माना है । मोतल जी नन्ददास का तृतसीदास का माई मानने के पक्ष मैं सर । उनके अनुसार बहस सम्बन्ध मैं कोई आपनति नहों छोनी चाहिर क्याँकि वारता मैं इस बात का स्पष्ट कथन है | मीतल जो के हस प्रयास से नम्यदास चविभयक स्वतंत्र अध्ययन को आवश्य- कला को पूर्ति में कौ विशेष याौगदान द्ष्टिगत नहीं हुआ | डा० शामसुन्वलाल दौ कित तथा ढा० स्नेैहलता' मीवास्तव ही 1 कु... ' हु कु . है ? . हु हु! हु | कह हा का हु रु डक 3 कु झ् आलॉचना त्मक ब्रन्थों के अन्तर्गत ढा० शामसुन्दरलाल दो क्ित तथा डा० स्नेहलवा श्रीवास्तव के कमश: 'कृष्णकाव्य में श्रमरगोत आर उसको परम्परा 'लकसक मज्य--उस्लेसनस-हैं-+- हन-फ़न्थकेनमें आर हिन्दी में प्रमरगोत ,यरम्पटाा सासक सेब उल्लेखनीय हैं । इन गन्थाँ मैं नन्ददास का अध्ययन उनके मंवरमगीत की दॉष्टि में रखते एवम्मकाम्यमवयुलपुलणवननकाण्यकपुतकापाणाका पका 9 सो-चलंकिं: जवकाए नवनों सावेका जया शा: लाल एवाीं।, तर खायोए शाह सा कह पलक कानों, कि लय अल नल: साहा अवध वन वहा वनों बात सन लव वा दल, पाता शक कर तारेंधि कक पययगालिि ₹- बष्ट्लाष परिचय, प्रमुक्यात मीतल, पुष २९७-३३७ ।




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