सामवेदीय ब्राह्मण ग्रंथों का सांस्कृतिक अध्ययन | Samvediya Brahaman Grantho Ka Sanskritik Adhyayan

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Samvediya Brahaman Grantho Ka Sanskritik Adhyayan by मंजूलता शुक्ला - Manjulata Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 और उत्तर वैदिक युग। इस दृष्टि से पूर्व वैदिक युग में केवल वेद की चार सहिताएँ और उत्तर वैदिक युग में ब्राह्मण ग्रन्थों से लेकर छः वेदांगो का साहित्य रखा जा सकता है। 'वेद' शब्द का अर्थ शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'वेद' शब्द 'विद' घातु में धज्‌ प्रत्यय लगकर बना है। 'विद्‌' धातु का सम्बन्ध विद्ललाभे एवं 'विद ज्ञाने' दोनो से ही है । 'ऋषक्प्रातिशाख्य' के वृत्तिकार विष्णुमित्र ने उक्त दोनो अर्थों का उल्लेख किया है - 'विद्यन्ते ज्ञायन्ते लभ्यन्ते वा एभि: धर्मादिपुरुषार्था: इति वेदाः' अर्थात्‌ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक. पुरुषार्थचतुष्टय जिनके द्वारा जाना जाये या प्राप्त किया जाये, वे वेद हैं। इस प्रकार वेद शब्द का अभिधेयार्थ 'ज्ञान' है। व्युत्पन्न वेद भाष्यकार सायण ने इसी के समान 'वेद' शब्द का अर्थ किया है| ' जीवन में वांछनीय अथवा इष्ट की प्राप्ति एवं अवांछनीय अथवा अनिष्ट के निवारण में वेद साधनभूत अलौकिक उपायों का ज्ञान कराता है। स्वामी दया नन्द सरस्वती ने “ऋग्वेदभाष्यभूमिका' में वेद का निर्वचन इस तरह किया है - “जिनसे सभी मनुष्य सत्य विद्या को जानते हैं अथवा प्राप्त 1-'.... “अलौकिक पुरुषार्थोपायं वेत््यनेनेति वेदशब्दनिर्वचनम्‌ | इष्टप्राप््यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थों वेदयति स वेद: । ” ऋग्भाष्यभूमिका




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