हरिहरानंद आरण्यकृत भास्वती का आलोचनात्मक अध्ययन | Hariharanad Aranya Krit Bhaswati Ka Alochatamk Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hariharanad Aranya Krit Bhaswati Ka Alochatamk Adhyayan by शाहीन जाफरी - Shaahin Zafari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शाहीन जाफरी - Shaahin Zafari

Add Infomation AboutShaahin Zafari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ततीय उध्पाय सात पता कया हवन नननाातकह एलक-सासत भास्वली के योग का श्वत्प जि या लॉफनिमूरनिकेटुसफर्थ गकद ०. लिप सिससलिचयनय निकरेशनं-.. “पिपरकिसवककशंक . परपपसकडन राभव. ही फिलिसवननययीकर न्वनलन्वुलिसवलिमिंसिकं कूलर ूल कन्सकुलमरर कु कननाटनि' कुल दुसि्रर जून जूलासार ूहगिर दलीका जुल्म सिर कूल कूल मून्यिर पोग शष्ट दिचा दिंगणीय बुज् धाहु मैं व्यंज पत्यम लगाने से निश्यनन इुआ है जिसिका अडि तम थि है । यॉगः समाधि; से घ तार्वभीर: चित स्य घर मौन 1/1 पर भाष्य अयांत चित्त के सम्पक अधान पसराधानह के लिए हीं योग शब्द का प्रयोग किया जाता है । चित्त की तम थि अधवा समधघान रक सारवभोण धर हैअयात सभी मभ्यिों मे रहता है तस्कर के कारण 'चिल्त प्राय: जिन अवस्था जे के रहता है उ चिल्त की भग्यिँ कहाँ हैं । थे उ्श्यतः पाँच हैं > दिप्तु, य., सिट्षिप्त , श्काज़ स्व निल् इते यह शि८ हुं कि ताडययी गदर्शन समुक्त योग शा ब् भुनन-तमधों घातसे ही. धस प्रत्थप लगकर बना हुआ हैं । चिनतस्तिपिरोध रूपी सम दि के अधि दें ही पातन्जा घाग” काज़हण करना चाहिये । यह योग शा ब्द अन्य अं ४ प्रयुक्त नहीँ मना जा सकता है क्योकि पातन्जल योग संयोग स्पन होकर चिधोगफलक ही है, अपांत देन वाला होताहै । जता कि गाता मे कहा गया है > दुख संयोग िपोगं योग सेंशितस 6/253. योग का अर्थ समा थि था चिनतत्ति का निरोध अश्य है सिन्त प्रत्येक सम थि या पत्थक प्रकार के चितव॒स्ति के मिरीध को योग नहीँ कहा जा सकता फिर योग किस समा थि को कहेँगि9 1« योग: सम घिं: से च सार्वमौ महिचलत्य धर । यो. भा. हू, 1-1 सिंप्ता, उधा च चिविप्तार्का़ा च निरुटिका । 2, सत्तेभु तहजाव वार फोमा शिचित्तमम्पर । योगका रिंका--9




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now