आंधी का दिया | Aandhi Ka Diya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aandhi Ka Diya by महेशकुमार शर्मा - Maheshkumar Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महेशकुमार शर्मा - Maheshkumar Sharma

Add Infomation AboutMaheshkumar Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ब्याँधी का दीया डे महान आकांक्षा जगा दी । यदि चुनार दुर्ग उसे किसी प्रकार प्रात हो जाथ तो वह सहज ही हुमायूँ की बढ़ती हुई शक्ति को रोक सकता है | दोश्राबे के मैदान में श्रफगानों का कण्डा फिर उसी मरती से लहरा सकता है। किन्तु यह सपना साकार केसे होगा ! बीच में सुन्दरी लाद मलका जो है | कया वह इस नकशे में कुछ रख मर सकती है ! शेर खाँ तड़प उठा । लाद को झतनयभरी झाँखें, अनुरागयुक्त नशे पुतलियाँ, माबातुर स्पन्दन श्रींर उसकी मधुर बातें स्मरण हो स्ायीं । क्या बह भी. यही चाइती है ! हे भगवान ! तब उत्तर भारत का राज्य मुगलों से छीनकर पुनः श्रफगानों की प्रतिष्ठा जमा देने में कोई ड़न से होगी । इस बार जब वह चुनार श्राया तो लाद ने उससे मेंट की थी । शेर खाँ का स्वप्त साकार होना नवाहता था । उस बविजयोत्सव की खुशी में खुमार का वह पर्वतीय प्रान्त बरसात के सजल मेघों के गर्थन से सुखरित्त दो रद्दा था | भाइपद का महीना था । पानी जोरों से बरस रहा था । नदी- नाले उमड़ कर बह रहे थे । गड्ा किले की ऊपरी दीवार श्रौर खिड़की तक झा लगी थीं । उनकी उत्ताल तरड्ञों से प्रताड़ित होकर भी किले की बुियाँ श्रटल तपरवी-सी निस्पन्द' श्रौर श्रडिग खड़ी थीं । उत्तर की शोर बगल के मैदान में शेर खाँ का खेमा था । वारी श्र घास के जुटे जम श्राये थे । पत्थरों के ठुकड़ों श्रौर ऊबड़-खाबड़ टीलों से रास्ता बीदड़ हो गया था । रात के घने श्रत्थकार में नाहर निकलना भी कठिन था। वर्षा हो चुकी थी, किन्तु बादल झब भी गरज रहे थे । वायु तीन्र श्रौर शीतल थी जो वेग से बहती हुई छावनी की रावटियों के रस्सों को हिलाती, कनातों को भकसोरती श्रौर मशालों को संश्रस्त करती हुई श्राँवी की भाँति निकल जाती । कमी-कंभी बस्य यशुश्नों की जगत दूर पदक पर सुनाई पड़ती । 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now