दिगम्बर और दिगम्बर मुनि | Digamberatva Aur Digamber Muni

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Book Image : दिगम्बर और दिगम्बर मुनि  - Digamberatva Aur Digamber Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे ) की ज्ञा सकती है; दुसरी बात यह है कि यदि उस संमंय आत्मा प्रबल हुई तो उसके झसर को झपने उपर न सी होने दे । उपयुक्त कथन से स्पष्ट है कि जीव के राग, ट्ेष श्र मोदादिक ही चिक्षारीभाव हैं, जिनके कारण कि जीबच अझवतक इस चक्कर में पड़ रददा दै और जिसके कारण कि उसको शानेक यातनायें भोगनी पड़ती दे; झौर यद्दी मुख्य वात है जिसके कारण यदद जीव जीवातिरिक्त पदार्थों में भी राग शोर द्वंघ करता है। जब तक जीव में इस पध्रकार के परिणाम होते रहेंगे तबतक उसका खस्चन्थ भी कर्मों से अवश्य होता रहेगा । श्रतः उन जीवों को जो कि इस चक्कर से वचन! चाहते हैं यद्द अनिवार्य दे कि वे राग श्र ट्ेपादिक का विलकुल अभाव फर । जिख प्रकार कि यह चात सत्य है कि वाद्य पदार्थों का कमजोर शात्माञों पर प्रभाव पड़ ता है, उसदी प्रकार यद भी कि बिना दूसरे पदार्थों के राग झऔर टप के उनसे जीव का सम्चन्ध रदना भी असंभव दै ! झतः राग शोर ट् पादिक फा छामाव धीरे २ या एक दम राग श्रौर द पादिक के कारण पवच उनके काय॑ चाहा पदार्थों के सम्बन्ध त्याग से दो सक्ता हैं। इसदी वातकों लेकर जबसे मनुष्य श्रहस्थ जीवन में प्रबेश करता है इस बात को पूर्ण ध्यान रखता है । ध्यान ही नहीं घदिक उसके लिए सतत प्रयरन भी करता है कि वद्द राग




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