राष्ट भाषा की शिक्षा | Rashtra - Bhasha Ki Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषा
इतना ही नहीं, वरन् सम्यता के प्रारम्भ से आजतक का सम्पूर्ण ज्ञान शाब्स-के
साधन से ही अटूट रहा है । पुरानी पीढ़ियों अवश्य नर हुई, पर ज्ञान का मण्डार बढ़ता.
ही रह, और मनुप्य अपने पूर्वजों के अर्जित ज्ञान का लाम सदा उठाता ही रहा |
यह प्राधिकार मनुष्य जाति की बीती --- पैतिक सम्पत्ति -- हैं । पु अपने पूर्वजा के
ज्ञान का लाम नहीं उठा सकते है । फछतः उनका जीवन इतिहास-यूत्य हैं |
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इस प्रकार भाषा की निम्न लिखित विद्योपताएँ: है :
१ मापा के कारण सानव-जाति पनु-वर्ग से ऊँची है ।
). मापा के द्वारा सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता की स्रि हुई है
) भाषा के द्वारा ही हम अपने विचार प्रकट कर सकते है ।
) भाषा ज्ञान की प्राप्ति और उसकी इद्धि का प्रमुख साधन है ।
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४. साधा और सस्पता
भाषा का उत्थान और पतन किसी भी देन की बढ़ती और घटती पर निर्भर
रहता है । हमारे देदय में गुप्त-वंग-काल सभ्यता का स्व्ण-युग समझा जाता है। इसी
समय हमारे देद मे सस्कृत भाषा के उत्कप्ट काव्य लिखे गये थे । इंग्लैंड में प्रथम
एलिजावेथ के समय शेक्सपियर, वाल्टर रैठे तथा वैकन सरीखे महान् , लेखक हुए |
फ्रास में चौदहवें छुई के समय कवियों तथा लेखकों की भरमार थी | कारण स्पष्ट ही है ।
हम सब जानते ही है कि विद्या का प्रचार तभी ठीक ठीक हो सकता है, जब कि
देद्य म सम्पूर्ण लान्ति रहे । लेखक तभी निकलते है, जत्र विद्या का उचित प्रचार हो
और वे द्यान्ति-पूर्वक लिख सके । अवश्य, कभी कमी साम्राज्य के व्वेस के कारण
भाषा के प्रसार मे सहायता मिलती है, जैसा कि सुगूल-साम्राज्य के पतन के पत्चात्
हिन्दी की खड़ी बोली का हुआ । अनेक उू-क्ायर दिल्ली को छोड़कर लखनऊ,
फैजावाद, प्रयाग, काथी, पटना सादि पूर्वी झहरो मे जा बसे । दिल्ली के बहुत से
व्यापारी भी इन दाहरो में जाकर रहने छंगे । इस प्रकार दिल्ली की खड़ी चोली का
ग्रचार बदा * |
हम सदेव अवध्य स्मरण रखना चाहिए कि भाषा प्रगतिद्ील हैं। किसी भी
भाषा का विकास शियु की भाषा की नाई होता है। छियु सारम्म में टूटी-फूठी भाषा
वोलता है; पर धीरे-धीरे नवीन गव्दावलीं पाकर उसका मापा-ज्ञान उत्तरोत्तर बढ़ता
* रामचन्द्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास; काशी, नागरी प्रचारिणी सभा,
पृष्ठ ४०८ 1
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