वर्जित देश तिब्बत में | Varjit Desh Tibbat Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लल्‍्हासा के लिए निमन्त्रण “वास्तव मे महान झ्राइचयें हो गया है । मुक्ते कलकत्ता मे मिलो । हम ल्हासा को प्रस्थान कर रहे है ।'” डैडी की यह सूचना बेतार के तार से मुक्ते तेहरान मे १४ जुलाई, १९४९ को मिली जबकि मैं पुर्वी ईरान के बच़््तियारी कबीलो के वीच संयुक्त राज्य अमरीका की सुप्रीम कोट के न्यायाधीश विलियम श्रो० डगलस के साथ एक सप्ताह को यात्रा के उपरान्त लौटा । साहसिक यात्राशओ में रुचि रखनेवाला ऐसा कौन व्यक्ति होगा, जो इस सूचना को पाकर खुशी से उछल न पड़े । मैं तो ईरान के गम और वीरान मैदानो को शीघ्र छोडनेडकी झाश्या मे हें से नाचने लगा । मैंने निश्चय किया कि ईरान का अध्ययन श्रौर उससे सम्बन्धित फिल्म, जिसे कि मैं बनाने की तैयारी मे था, लम्बे अरसे तक रोके जा सकते है । मेरे सामने इस समय ऐसा अझ्रपूर्व झवसर था जसाकि गिने-चुने युरोपियन या झ्मरीकी लोगो को मिला है--इस संसार से प्रायः पृथक श्रौर वहुत : दूर स्थित देश तथा उसकी राजघानी ल्हासा को चलने का निमन्त्रण । 'वर्जित देवा तिब्बत ! ' पश्चिमी देशों के निवासी इसे सदियो से ऐसा समभते रहे है । यह भिदभरा पवंतीय राज्य, जो कि तृग हिमा- लय के परे संसार की छत पर स्थित है, खोजियों भ्रौर अज्ञात के जिज्ञासु साहसी यात्रियों के लिए सुवर्ण देश के समान रहा है । किन्तु पदिचमी यात्रियों के मध्य एशिया में प्रवेश के उपरान्त भी इस शान्ति- पूर्ण एवं दुर्गम देश में थोड़े ही लोग पहुंच सके है। तिब्बत के राजनैतिक




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