उपरवास कथायत्री | Uparvas Kathatrayi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
674
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)6 उपरबात कथात्रयी
की नसवार की खाली डिब्बी लेकर वह खेत में आया था । बाबा. को दिस्वाकर
खेलनें कमा था । फिर अचानक उसकी इच्छा हुई कि दादा्शी को साथ :लेकर वह
डिब्बी दादीमाँ को दे आनी .चाहिए । नसवार के बिना उन्हें तकलीफ होती होगी ।
उसने कहा मी था कि-“चढो दादाजी अपने दूनो जने ह डिबिया बुढी माँ का दे
आयी ।” उस दिन उनकी आँखों में कमी न देखी पानी की बूँदें देखकर वह सन्न
रह गया था । बाक़ी सवालों को वह अपने नये-नये उगे हुए दाँतों में दबाकर बेठा
रह गया था ।
दादा ने माछा फिराते-फिसते उसकी ओर देखा:,कि तुरंत उसते मौतवाली अधूरी
रद्द गई बात याद कराई । दादा ने देखा कि यहाँ सेच बोलने से काम चलनेवाढा
नहीं है अतः अन्त में उन्होंने कबूल कर लिया कि वे नहीं मरेंगे । थोढ़ी ही देर
में वह इतना खुद्द हो गया कि दादा माला फिरा रहे हैं, यह भूलकर उनकी पीठ
पर सिर रखकर उनकी गर्दन पर हाथ फिरा-फिराकर ऐसे खेलने लगा जेसे चरनी में
सींग रगड़-रगड़ कर बछड़ा खेल रहा हो । दादा ने कहा, 'देवू देख तू अब बड़ा
होय गया है ।'
देवू शान्त हो गया । उन्होंने माला रखकर छपरिया में चिथड़े में बंबे हुए
गुढ़ की एक डली निकालकर दी । इतने में बेलों के घुंघरू और भरी हुई गाढ़ी
के पहियों की चरमराहट सुनाई दी । “बापू आये” कहता हुआ वह अपने पिता
की ओर दौड़ पढ़ा । बुढ़ुऊ भी उठकर उसके पीछे-पीछे चल पढ़े । गाढ़ी में घास
के पूले भरे हुए थे । नरतंग जुआ पर बेठा था । उसकी गोद में आराम से बेठे
देवू के छोटे भाई लवजी ने आनंद की किलकारी की । बुढ़ुऊ ने आगे बढ़कर उसे
उठा लिया । देवू ने उसके पाँव में चिकोटी भरकर अपनी ईष्यी का प्रदर्शन किया ।
चकरोड से खेत की ओर उतरते हुए गाड़ की आवाज़ तेज हुई । बुढुऊ ने आग
जलाई । नरसंग ने चिलम भरी । लवजी और देवू घर चलने के लिए; जिद करने
छंगे । घर से खाना ले आने के बाद पिताजी से बात करेंगे यह सोचकर नरसंग
दोनों लड़कों को लेकर खेत के बीच के रास्ते से चल पढ़ा ।
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देवू अपने से तीन वर्ष छोटे भाई लवजी से झगदने लगा । ऱठती किसकी थी
इसका विचार किए बिना ही नरसेग ने छठकर देवू के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया ।
देवू रोया नहीं, नाराज होकर सीढ़ी पर जा बेठा । ढवजी अपराधबोध तथा माँ के
भय से चुपचाप देवू के पीछे खड़ा रहा । किन्तु कंबू ने उससे कुछ कहा नहीं ।
नरसंग को अब पछतावा हो रहा था । उसने देखा तो. कंकू की आँखें सी सीग खुकी
थीं । नरतंग मिट्टी की चिलम लेकर उसे कुरेदता रहा । कंकू ने देवू को बुढाया
ले, भा वा छुददारा दूं । '
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