उपरवास कथायत्री | Uparvas Kathatrayi

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Uparvas Kathatrayi  by रघुवीर चौधरी - Raghuveer Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 उपरबात कथात्रयी की नसवार की खाली डिब्बी लेकर वह खेत में आया था । बाबा. को दिस्वाकर खेलनें कमा था । फिर अचानक उसकी इच्छा हुई कि दादा्शी को साथ :लेकर वह डिब्बी दादीमाँ को दे आनी .चाहिए । नसवार के बिना उन्हें तकलीफ होती होगी । उसने कहा मी था कि-“चढो दादाजी अपने दूनो जने ह डिबिया बुढी माँ का दे आयी ।” उस दिन उनकी आँखों में कमी न देखी पानी की बूँदें देखकर वह सन्न रह गया था । बाक़ी सवालों को वह अपने नये-नये उगे हुए दाँतों में दबाकर बेठा रह गया था । दादा ने माछा फिराते-फिसते उसकी ओर देखा:,कि तुरंत उसते मौतवाली अधूरी रद्द गई बात याद कराई । दादा ने देखा कि यहाँ सेच बोलने से काम चलनेवाढा नहीं है अतः अन्त में उन्होंने कबूल कर लिया कि वे नहीं मरेंगे । थोढ़ी ही देर में वह इतना खुद्द हो गया कि दादा माला फिरा रहे हैं, यह भूलकर उनकी पीठ पर सिर रखकर उनकी गर्दन पर हाथ फिरा-फिराकर ऐसे खेलने लगा जेसे चरनी में सींग रगड़-रगड़ कर बछड़ा खेल रहा हो । दादा ने कहा, 'देवू देख तू अब बड़ा होय गया है ।' देवू शान्त हो गया । उन्होंने माला रखकर छपरिया में चिथड़े में बंबे हुए गुढ़ की एक डली निकालकर दी । इतने में बेलों के घुंघरू और भरी हुई गाढ़ी के पहियों की चरमराहट सुनाई दी । “बापू आये” कहता हुआ वह अपने पिता की ओर दौड़ पढ़ा । बुढ़ुऊ भी उठकर उसके पीछे-पीछे चल पढ़े । गाढ़ी में घास के पूले भरे हुए थे । नरतंग जुआ पर बेठा था । उसकी गोद में आराम से बेठे देवू के छोटे भाई लवजी ने आनंद की किलकारी की । बुढ़ुऊ ने आगे बढ़कर उसे उठा लिया । देवू ने उसके पाँव में चिकोटी भरकर अपनी ईष्यी का प्रदर्शन किया । चकरोड से खेत की ओर उतरते हुए गाड़ की आवाज़ तेज हुई । बुढुऊ ने आग जलाई । नरसंग ने चिलम भरी । लवजी और देवू घर चलने के लिए; जिद करने छंगे । घर से खाना ले आने के बाद पिताजी से बात करेंगे यह सोचकर नरसंग दोनों लड़कों को लेकर खेत के बीच के रास्ते से चल पढ़ा । 2 देवू अपने से तीन वर्ष छोटे भाई लवजी से झगदने लगा । ऱठती किसकी थी इसका विचार किए बिना ही नरसेग ने छठकर देवू के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया । देवू रोया नहीं, नाराज होकर सीढ़ी पर जा बेठा । ढवजी अपराधबोध तथा माँ के भय से चुपचाप देवू के पीछे खड़ा रहा । किन्तु कंबू ने उससे कुछ कहा नहीं । नरसंग को अब पछतावा हो रहा था । उसने देखा तो. कंकू की आँखें सी सीग खुकी थीं । नरतंग मिट्टी की चिलम लेकर उसे कुरेदता रहा । कंकू ने देवू को बुढाया ले, भा वा छुददारा दूं । '




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