काव्य के रूप | Kavya Ke Roop

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Kavya Ke Roop by गुलाब राय - Gulab Raay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य का स्वसूप ' पर माससिक्र विजय प्राप्त कर सारे योरोप पर अपने विचारों और संस्कृति की छाप डाल दी | प्राचीन यूनान का सामाजिक संस्थान वहां के तत्कालीन सादित्य के प्रभाव को उ्वलन्त रूप से घ्रमाशित करता है । योरोप की जितनी कला है वह प्राय: यूनानी शदर्शों पर चल रही है। इन सब बातों के अति- रिक्त हमारा साहित्य हमारे सामने हमारे जीवन को उपस्थित कर उसको सुधारता है । हम एक आदर्श पर चलना सीखते हैं । साहित्य हमारा मनो- चिनोद कर हमारे जीवन का भार भी हलका करता है । जहाँ साहित्य का अभाव है वहाँ जीवन इतना रम्य नहीं रहता । साहित्य एक गुप्त रूप से सामाजिक संगठन और जातीय जीवन का भी वद्धक होता है । हम अपने विचारों को अपनी अमूल्य सम्पत्ति समकते हैं, उन पर दम गव करते है। किसी अपनी सम्मिलित वस्तु पर गये करना जातीय जीवन और सामाजिक संगठन का प्राण है । अंग्रेजों को शेक्सपियर पर बड़ा गये दे । एक अंप्रेज साहित्यिक का कथन है कि वे लोग शेक्सपियर पर अपना सारा साम्राज्य न्यौछावर कर सकते हें । मारा साहित्य हमको एक संस्क्ति और एकजातीयता के सूत्र में :बाँधता है जैसा साहित्य होता है वैसी ही हमारी मनोवत्तियाँ हो जाती हैं छोर हमारी मनोवत्तियों के अनुकूल हमारा कार्य होने लगता दे; इसलिए हमारा साहित्य हमारे समाज का प्रतिबिस्ब ही नहीं वह उसका नियामक और उन्नायक भी हे । क साहित्य और आआत्मभाव कक श्री मम्मटाचाय ने काव्यप्रकारा के प्रारम्भ सें कवि की सारती की प्रशंसा करते हुए काव्य को स्वतन्त्र ोर आनन्द्मय काव्य में... बतलाया है-- आत्म -स्वालन्भ्य 'वियतिकतनियमरहितां ह््ादेकमयी सनन्यपरतन्त्रामू । नमवरसरधिरां निमितिमादघती भारती कवेजयति ॥' अर्थात्‌ नियति (थाग्य) के नियमों के बन्धन से रहित केवल आनन्द से ही भरपूर, दूसरे की वश्यता से रहित नवरसों से सुशोमित ऋषि की वाणी की जय हो । इस पद्य में कवि की रचना को ब्रह्मा की रचना से श्रधानता दी गई है। ब्रह्मा की रचना माग्य के नियमों पर निभर रहती है किन्तु कवि की. रचना ऐसे बन्धनों से मुक्त है। वास्तव में कविता अनन्य परतन्त्रता होने




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