स्वतंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यासों में सर्वहारा चेतना | Swatantryottar Hindi Upanyason Men Sarvahara Chetana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). एक विशिष्ट सम्भावना थी। उसने लिखा “संघर्ष और केवल संघर्ष ही निर्धारित करेगा
कि हम कितना आगें बढ़ पाते हैं ।''
'पूँजी' को मार्क्स ने मानव समाज के जीवन मूल्यों का नियामक माना | पूँजी की
भूमिका में मार्क्स कहते हैं। “इस रचना का अंतिम उद्देश्य आधुनिक समाज (अर्थात
पूँजीवादी) (बुर्जुआ समाज) की गति के आर्थिक नियम को खोलकर रख देना ही हैं |
इतिहास द्वारा निर्धारित समाज विशेष के उत्पादन सम्बन्धों का, उनके उद्भव, विकास
तथा ह्यस का अनुसंधान यह हैं मार्क्स की आर्थिक शिक्षा का अंतर्य। पूँजी के उत्पादन
के नियमों के गहन अध्ययन कर उसने बताया कि पूँजी के बढ़ाव में पूँजी और मानवीय
श्रम दोनो का योगदान होने के उपरान्त भी श्रम शक्ति की उपेक्षाकर पूँजीपति वर्ग
व्यक्तिगत पूँजी निरन्तर बढ़ रहा है। ऐसे वर्ग को उसने शोषक वर्ग की संज्ञा दी।
दुनिया भर में पूँजी उत्पादन की विद्या को एक मानकर उसने अपने अपने सिद्धांतों की
प्रतिष्ठापना को जो निम्नवत हैं:-
(1)दुनियाभर के पूँजीपतियों का एक वर्ग हैं जिसे मार्क्स ने बूर्जुआ वर्ग की संज्ञा
दी।
(2)श्रमिकों वर्ग जिसकी श्रमशक्ति का उपयोग पुँजीपतियों ने मनमाने ढ़ंग से की
उस वर्ग को प्रोलिटेरियट कहा |
सैद्धान्तिक तौर पर विश्व के अन्य सामाजिक विकास पद्धतियों के चिन्तन
(विशेष रूप से भारत) का बिना अध्ययन किये पूँजी के प्रति अपने दृष्टिकोण को सही
मानकर संघर्ष के लिये सर्वहारा वर्ग को संगठित करने का आह््वाहन मार्क्स ने किया।
पहली बार दुनिया के पैमाने पर मार्क्स ने शोषित जनता की सर्वहारा (पोरोतालियन)
शब्द दिया। उसके शोषण की व्याख्या की कारणों का तलाश किया, और मुक्ति का
कान्तिकारी दर्शन दिया है। वर्ग संघर्ष आर्थिक संघर्ष से मुक्ति पाने एवं पूँजीवादी
व्यवस्था को भंग करने का एक सशक्त साधन हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का
कथन हैं कि 'आज समाज केवल भावलोक का विद्रोह कर टाल सकता हैं, परलोक
मानस में शुष्क धर्माचार व रूढ़ मान्यताओं के प्रति यह भाव लोक का विद्रोह किसी दिन
वास्तविक के विद्रोह का रूप ले सकता हैं। यह वास्तविक लोक आधुनिक जीवन की
वपलववपापलवशपालवविाएवथयय।
1. परख : एक वैकल्पिक प्रस्ताव पत्रिका - अक्टूबर 2001 से मार्च 2002, सुदर्शन
आफसेट, इलाहाबाद, पृष्ठ-9
2. लेनिन : कार्लमार्क्स और उनकी शिक्षा - प्रगति प्रकाशन मास्को, प्रकाशन सन्
1989 ई0, पृष्ठ-21
User Reviews
No Reviews | Add Yours...