पुराण - तत्त्व - प्रकाश भाग - 2 | Puran - Tattv - Prakash Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व वन कस्य सन्तव्यमुपदेशधिया.5नघ । न
सर्वे लो भा 5भिभुतासते देवाइच सुनयस्तदा ॥ १४ ॥
|... तब व्यासजी ने कहा कि अ्रह्मा क्या अन्य सब देव रागी हैं व्योकि जो देह: |
| को घारण करेगा उसमें विकार अवदय होंगे हां यह चतुर हैं इससे इनका रागी |
| होना खब था चिदित नहीं होता समय समय पर यह भी मरते और जन्म लेने हूँ। |
| फिर इनके मिथ्या बोलने छल करने में दाका क्या छुई ।
यह संसार इसी प्रकार का है झा देह धारण करके कौन पाप नहीं करता |
| देखो चृहस्पति की भाय्या चन्द्रमाने खेछी थी चूहस्पति ने अपने भाईकी स्री को |
| श्रहण कर छिया था | जैसा कि-- भी
कि विष्ण: कि शिवो बह्मामद्यवा कि बृहस्पति: ।
देहवान् प्रभवत्येव विकार: संयतस्तदा ॥ १५. ॥
रागीविष्ण: शिवो रागी बह्माउपि रागसंयतः ।
[गेवान्किसकृत्य॑ वे न करोति नराधिपा ”
रागवानपि चातुपादिदेद इव लक््यते ॥ १६ ॥
स्रियते नात्र संदेहो चूपकिचित्कदा पिच । ं
स्वायषाउते पदमजाद्या: चयमच्छंति पाथिव ॥ २६ ॥ |
प्रमवन्ति पुनर्विष्णहरश्कादयः सुराः ।
तस्मात्कामादिकान्भावान्देहवान्प्रतिपद्यते ॥ ३० ॥
नाश्त्र से विस्मयः काय: कदाचिदषपि पाथिव ।
तस्माद्व हस्पतिभायां शशिनालंमिता पनः ॥ ३१ ॥
गुहशा लखिता माया नधाश्रातुयवीयस:
एवं संसारचक 5स्मिन्रागलोभादिशिवूतः ॥ ३९ ॥ |
|... इप्द्रका ४९, पवनों को और सूस्ये मददाराजका घोड़ा बन संज्ञा घोड़ी के साथ |
| समागम कर अधि्विनीकुमार का उत्पन्न करना । शुक्र महाराज का सतक कचका |
| जीवित करना आइचर््य जनक आँर सच्ट्रिम के विपरीत है। तद॒न्तर चृद्दश्पति |
| जी का मिथ्या बोलना । बसिष्ट और विश्वामित्रजी का क्रोघी होना । कदइयपका |
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