पुराण - तत्त्व - प्रकाश भाग - 2 | Puran - Tattv - Prakash Bhag - 2

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Puran - Tattv - Prakash Bhag - 2 by वंशीधरजी पाठक - Vanshidharji Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व वन कस्य सन्तव्यमुपदेशधिया.5नघ । न सर्वे लो भा 5भिभुतासते देवाइच सुनयस्तदा ॥ १४ ॥ |... तब व्यासजी ने कहा कि अ्रह्मा क्या अन्य सब देव रागी हैं व्योकि जो देह: | | को घारण करेगा उसमें विकार अवदय होंगे हां यह चतुर हैं इससे इनका रागी | | होना खब था चिदित नहीं होता समय समय पर यह भी मरते और जन्म लेने हूँ। | | फिर इनके मिथ्या बोलने छल करने में दाका क्या छुई । यह संसार इसी प्रकार का है झा देह धारण करके कौन पाप नहीं करता | | देखो चृहस्पति की भाय्या चन्द्रमाने खेछी थी चूहस्पति ने अपने भाईकी स्री को | | श्रहण कर छिया था | जैसा कि-- भी कि विष्ण: कि शिवो बह्मामद्यवा कि बृहस्पति: । देहवान्‌ प्रभवत्येव विकार: संयतस्तदा ॥ १५. ॥ रागीविष्ण: शिवो रागी बह्माउपि रागसंयतः । [गेवान्किसकृत्य॑ वे न करोति नराधिपा ” रागवानपि चातुपादिदेद इव लक््यते ॥ १६ ॥ स्रियते नात्र संदेहो चूपकिचित्कदा पिच । ं स्वायषाउते पदमजाद्या: चयमच्छंति पाथिव ॥ २६ ॥ | प्रमवन्ति पुनर्विष्णहरश्कादयः सुराः । तस्मात्कामादिकान्भावान्देहवान्प्रतिपद्यते ॥ ३० ॥ नाश्त्र से विस्मयः काय: कदाचिदषपि पाथिव । तस्माद्व हस्पतिभायां शशिनालंमिता पनः ॥ ३१ ॥ गुहशा लखिता माया नधाश्रातुयवीयस: एवं संसारचक 5स्मिन्रागलोभादिशिवूतः ॥ ३९ ॥ | |... इप्द्रका ४९, पवनों को और सूस्ये मददाराजका घोड़ा बन संज्ञा घोड़ी के साथ | | समागम कर अधि्विनीकुमार का उत्पन्न करना । शुक्र महाराज का सतक कचका | | जीवित करना आइचर््य जनक आँर सच्ट्रिम के विपरीत है। तद॒न्तर चृद्दश्पति | | जी का मिथ्या बोलना । बसिष्ट और विश्वामित्रजी का क्रोघी होना । कदइयपका |




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