चीन - कल और आज | Cheen-kal Aur Aaj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
271
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about के. एन. पणिक्कर - K. N. Panikkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्ण सूचना मिल गयी | सवाय होटलमें, जहाँ में ठदहरा हुआ था, मेरी
सुलाकात बरारके राजकुमारके पाश्वंचर कनंल वाघरेसे हो गयी । उनसे
मादूम हुआ कि हैदराबाद सरकार चोरी-चोरी भारी परिमाणमें दास्त्रा-
स्त्रॉकी खरीद कर रही है ! उन्होंने दख्रास्त्रॉके कुछ सौंदोंका ब्योरेवार
विवरण भी दिया । इनका एकमात्र उद्देब्य भारतके गम्भीर सैनिक
काररवाई करना ही हो सकता था ! यह स्मरण रखनेकी बात् है कि
इसी समय भारतीय सेना करमीरमें बुरी तरह व्यस्त थी और विभाजनके
फलस्वरूप अनेक सैनिक इकाइयाँंका पूरी तरहसे पुनः संघटन भी नहीं
हो पाया था | सैनिक दृष्टसि भारत एक कमजोर स्थितिमें था ! जैसा कि
बादंकी घटनाओंसे स्पष्ट हो गया, भारतकी इसी दुर्बल्ताकों निजामके
सलाहकारोंने बहुत बढ़ा-चढ़ाकर समझ लिया था ।
, दिल्ली पहुँचकर पहला काम मैंने यह किया कि संविधान सभामें,
जिसका मैं सदस्य था; जाकर ग्हमन्त्री सरदार वछभभाई पटेंलको कर्नल-
वाघरे द्वारा प्रास सूचनासे अवगत कराया ! उन्होंने त्रिटेनसें हैदराबाद
सरकार द्वारा इस्त्रास्त्रिॉ की खरीद और ऐसे शसख्त्रा्रॉको जिनका सौंदा
हो चुका था; . हैदराबाद पहुँचनेसे रोकनेकी तत्काल काररवाई की ।
बीकासेरमें कुछ समय तक ठहरनेके बाद मैं संसदकी वैदेशिक-विषय
समितिकी बेठक्में शामिल होनेके लिए दिल्ली लौट आया । बेठकके बाद
नेहरूजीने मुझसे बिस्कुल योंही मोटरमें साथ चलनेको कहा । मुझे आगे
जो कुछ आनेवाला था उसका जरा भी ख्याल न था । मोटरमें चुपचाप
'चढते अभी दस मिनट बीते होंगे कि नेहरूजी मुझसे एकाएक पूछ बैठे--
“कया आप एक राजदूतका पद सम्भाल्नेके लिए, बाहर जानेको सुक्त हैं ?'
मैंने जवाब दिया कि बीकानेरमें मेरा कार्य करीब-करीब समास हो रहा है
और ज्योही सुझे वहाँके कामसे छुट्टी मिली सुझे वे जहाँ भी चाहें सेवाके
लिए मेज सकते हैं । उन्होंने पूछा--अन्दाजन कबतक आपको छुट्टी
मिल जायगी ?” मैंने कद्दा--यही पहली अप्रैलतक' । “इससे पहले क्यों
नददीं ? क्योंकि महाराज तो राजमें छोक-प्रिय सरकार बनाने जा रो हैं १”
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