चीन - कल और आज | Cheen-kal Aur Aaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ण सूचना मिल गयी | सवाय होटलमें, जहाँ में ठदहरा हुआ था, मेरी सुलाकात बरारके राजकुमारके पाश्वंचर कनंल वाघरेसे हो गयी । उनसे मादूम हुआ कि हैदराबाद सरकार चोरी-चोरी भारी परिमाणमें दास्त्रा- स्त्रॉकी खरीद कर रही है ! उन्होंने दख्रास्त्रॉके कुछ सौंदोंका ब्योरेवार विवरण भी दिया । इनका एकमात्र उद्देब्य भारतके गम्भीर सैनिक काररवाई करना ही हो सकता था ! यह स्मरण रखनेकी बात् है कि इसी समय भारतीय सेना करमीरमें बुरी तरह व्यस्त थी और विभाजनके फलस्वरूप अनेक सैनिक इकाइयाँंका पूरी तरहसे पुनः संघटन भी नहीं हो पाया था | सैनिक दृष्टसि भारत एक कमजोर स्थितिमें था ! जैसा कि बादंकी घटनाओंसे स्पष्ट हो गया, भारतकी इसी दुर्बल्ताकों निजामके सलाहकारोंने बहुत बढ़ा-चढ़ाकर समझ लिया था । , दिल्‍ली पहुँचकर पहला काम मैंने यह किया कि संविधान सभामें, जिसका मैं सदस्य था; जाकर ग्हमन्त्री सरदार वछभभाई पटेंलको कर्नल- वाघरे द्वारा प्रास सूचनासे अवगत कराया ! उन्होंने त्रिटेनसें हैदराबाद सरकार द्वारा इस्त्रास्त्रिॉ की खरीद और ऐसे शसख्त्रा्रॉको जिनका सौंदा हो चुका था; . हैदराबाद पहुँचनेसे रोकनेकी तत्काल काररवाई की । बीकासेरमें कुछ समय तक ठहरनेके बाद मैं संसदकी वैदेशिक-विषय समितिकी बेठक्में शामिल होनेके लिए दिल्‍ली लौट आया । बेठकके बाद नेहरूजीने मुझसे बिस्कुल योंही मोटरमें साथ चलनेको कहा । मुझे आगे जो कुछ आनेवाला था उसका जरा भी ख्याल न था । मोटरमें चुपचाप 'चढते अभी दस मिनट बीते होंगे कि नेहरूजी मुझसे एकाएक पूछ बैठे-- “कया आप एक राजदूतका पद सम्भाल्नेके लिए, बाहर जानेको सुक्त हैं ?' मैंने जवाब दिया कि बीकानेरमें मेरा कार्य करीब-करीब समास हो रहा है और ज्योही सुझे वहाँके कामसे छुट्टी मिली सुझे वे जहाँ भी चाहें सेवाके लिए मेज सकते हैं । उन्होंने पूछा--अन्दाजन कबतक आपको छुट्टी मिल जायगी ?” मैंने कद्दा--यही पहली अप्रैलतक' । “इससे पहले क्यों नददीं ? क्योंकि महाराज तो राजमें छोक-प्रिय सरकार बनाने जा रो हैं १”




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