घाघ और भड्डरी | Ghagh Aur Bhaddari

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Ghagh Aur Bhaddari by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रैरे ) अवश्य हुआ कि, इम्पीरियल लाइन्रेरी में कुछ अधिक कहावतें मिलने का मेरा संदेह निकल गया । इस पुस्तक के संकलन में मुझे जिन छपी हुई पुस्तकों से सहा- यता मिली, उनके और उनके लेखकों के नाम धन्यवाद-सहित में यहाँ प्रकट करता हूँ । (१) सुफ़ीदुल्मज्ारइन--मासिक पत्र । (२) युक्तप्रान्त की कषि सम्बन्धी कहावतें--ले० श्रीयुक्त वी० एन० मेहता; 1. ८. 5, भू० कलक्टर बनारस; आजकल कसिश्नर इलाहाबाद । (३) कषि-रल्ावली--ले० बाबू सुकुन्द्लाल शुप्त; रायबहादुर, ब्यजमतगढ़ कोठी, झाजमगढ़ । कहाबतों में पाठान्तर बहुत सिलते हैं । और जब एक ही कहा- बत कई प्रान्तों में झअचलित सिलती है, तब पाठान्तर का सिलना स्वाभाविक भी है। मैंने इस पुस्तक में वही पाठ दिया है, जो मेरी समभा में ठीक था । अतएव कोई सजन यह न समझें कि मेंने किसी कहावत में अपनी ओर से कुछ बढ़ाया या घटाया है। मेंने सब में से एक पाठ चुन लेने के सिवा और कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। कहावतों का अथे, जहाँ तक हो सका; मैंने बहुत सरल भाषा में दिया है । आशा है; उनसे पूरा लाभ उठाया जायगा। हिन्दी-मन्दिर, प्रयाग दे रामनरेश त्रिपाठी जुलाई, १९३१




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