श्रवण कुमार | Sharvan Kumar
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
169
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ज)
पक,
हू । नाटक की नायिका शियादेवी ने झपनी माँ के सामने किसनी सूबधूरती
के साथ बसलाया है कि गाने वे होने चाहिए जो उपदेश से सरे हुए हो, न कि
गंदे शुगर रस में सने हुए। यमुना नदी के तद पर पंडों के जसघद का हुइ्यू
छथार की इच्छा से लेखक ने दिखाया है 1 ध्मौर बाबा चेतनदास का सम्लिर
तथा भाड़ स अन्त तक उस दुराचारी साथु का चरित्र दिशिषता सित्रयों की
छांखें खोलन के लिए है । ऐस साधुष््ों की रोक थाम के लिए लेखक ने कानूनी
कोन्सिलों से अपील भी की है। हमें आशा है कि लेखक दी यह ऋषीस
निष्फल न जायरी 1
सार चाटक का समाप्दि रूप से विचार करते हुए हस इसे पणित्र नारकीय-
साहिस्प में एक ऊँचा स्थान देने दो तथार है। नाटक के सभी पात्र चार
चरिन्रवाले हैं; और जिनका चरित्र गिरा हुआ है. प्रायः वे भी रे चलकर
टोसरे अंकमें बड़ी छघरता के साथ बदल कर उच्च कोटि के घार्सिक चरिन्रवास
बनगए हैं । नाटकीय ढड़ के प्रास और अनुप्रासान्त वाक्य तो लभी जगह
मरे पढ़े हैं । झज्ञार रस के सी एक दो इश्य बतौर चढनी के रख दिए गये हैं ।
दर्शकों के _चिस पर गडरा प्रभाव ढालनेबाले दृश्य सी करे हैं । इनमें से
चिशष रूप से. उल्लेख योग्य पहले शक में मां वी ममदा का वह डश्य है
जिसमें लघ्मी अपने पति के. साथ अपने येरें चम्पकलाल के घर से निकलती
है-बल्कियों कहिये कि निकाली जाती है । उस समय का उसका यह चाकय-
“न लोदा दे न थाली दे, मगर इतना तो दे बेटा )
तू यदद कह दे मेरी माता, में यह कहूँ मेरे बेटा” |
हृदय को बीघ डालता है ।
_.. '्रन्टिस अंक से वा की सत्युवाला रुण्य भी झांखों से आस टपकाने-
दाला है; आर मध्य के दृश्यों में चश्पक ्ौर चमेली का लड़ कराड़ कर एक
दूसरे से सम्बन्ध तोड़नेदाला ढग्य.बस सैसार की स्वाथिपरायशुता का नसूनः
इतनी रपष्टता के साथ सम्सुख ले झाता हैं कि सच्ची और निमेल प्रकृतिवालि
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