बंगाल की पहेलियाँ - एक उध्ययन | Bangal Ki Paheliyan - Ek Udhyayan

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Bangal Ki Paheliyan - Ek Udhyayan by कल्पना मुखर्जी - Kalpana Mukharji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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86; शदि। इसके अलावा पैर कई बोटी जेटी नदिया भी दै। यहाँ के प्रादृतिक सोन्दर्य मन सथा नैत्र दी सुब देने लाला है। यहाँ दी सर्नपान जनसंख्या रद जाति या परिवार ऐे नहीं अना है, विभिन उ्यजातिसीं के नाप इस प्रकार है - - *पाफ - जाइ्ट्लायड, मंगौलियन, आरमी रन, ऊत्माइ॑न और पगार्चिक। प्रागैतिदाझिक युग मैं जो भी ये आये वहीँ जए गये और अपना पन्ना सास्वृतिक विकास ने लगे नू - शास्त्रजीं दै अनुसार *चिग्िटै*.. जाति दी सदते पुरानी दे जौ जौग अपी भी भाएत मैं नजर आते है। जँगाली आदिवासी उालियोँ में नपुँा, बाउट़ी, बाग्दी, माल, साँवताल, औरावों, बोठी, पूटानी, आदि उल्लेघनीय हैं। (1 .नीम्ी लौग सर्तफ्रधम तरगद है दूध की पुपा काने लगे (2) मुँडा जाति के लोग प्ले पछल चुमककढ़ जीतन किताति थे स्तपान युग में यही वैती बारी काने की आदत से है। थे लीग गम देःताओँ वी पूजा अर्थात पुरतोषित शिगि भी काते हैं। श्रीध्मकाल है पानी के लिये *सूर्ववता' पो पूजा काले हैं। उन्नत सकाय रुक लताड दा नूख्य करते दे जिसे 'छाउनृत्य कहते दे। (3) साँवताल - ये लौग बैती जारी काते दैं। साँवताल नृूह्प बंगाल का रद विधिष नृत्य माना जाता है। ये संगीत और नृत्य के प्रेमी. हैं: थे अपने * पित्त तथा *सुर्वदेदला* और *सिंबाँगा' की पु वात हे। (4). प्राक > आस्टूया >- मोष्टी 5 लोग पृध्य रखा के आसपास रदसे हैं। ये लोगसक 'ध बैठका खाना - पीना, सके गीश् से दूसौ गीज मैं




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