अनासक्तियोग और गीताबोध | Anasaktiyog Aur Gitabodh

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Book Image : अनासक्तियोग और गीताबोध  - Anasaktiyog Aur Gitabodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ छानेक शब्दों में,'. पुनरुक्ति का दोष स्वीकार करके: भी, 'मच्छी तरदद स्थापित किया हे । . न ' वह झट्चितीय पाय हे कमेफलत्याग। . इस मध्यविन्दु के चारों ओोर गीता की सारी- सजावट की गई है । भक्ति, ज्ञान इत्यादि उसके ्मासनपास त्तारामएडल! को भांति सज गये हैं । जद्दां देह है वहां कर्म तो है दी । उससे कोई मुक्त नदीं है। तथापि शरीर को प्रसु-मंदिर बताकर उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त होती हैं, यह सब धर्मों ने अतिपादन किया है। परन्तु कर्ममात्र में कुछ दोष तो ? ही मुक्ति तो निर्दोष की ही होती हे । तथ कर्सचन्धन से अथोत, दोपस्पशे से कैसे छुटकारा हो ? इसका लवाव गीता ने सिश्वयात्मक 'शब्दों में दिया हे-- “पनिप्काम कम से, यज्ञाथ कमे करके, कमेफशा का त्याग करके, सब कर्सो को कृष्णापंण करके अर्थात मन, वचन और काया को ईश्वर सें होम करके ।” - पर निष्कामता, कर्मफलत्याग कहने-भर से दी नहीं दो जाती । यद्द फेवल बुद्धि का प्रयोग नददीं हे। यदद हदयमन्थन से दी उत्पन्न होता हे । यह त्याग- शक्ति पेदा करने के लिए ज्ञान चाहिए । एक तरह का ज्ञान तो वहुतेरे. पशिडत पाते हैं । वेदादि उन्हें करठ दोते हैं। परन्दु उनमें से 'धिकांश भोगदिमें लीन




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