समयसार प्रवचन भाग - 10 | Samayasar Pravachan Bhag - 10

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Samayasar Pravachan Bhag - 10 by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाचा २४० से प्तथ हो ११ सहीं लगाया तो सागी बाते वैसी ही दिख रही हूं जो तेल लगाये हुए पुरुप कर रहा था 'पौ” धरूहसे लथपथ हो रददा था, । उसी 'अखाडेमे गाया जह कि घूल सरी दुर् २. बेसे दी शस्त्रोका व्यायाम किया, बैसे ही 'झार अनेक करण, उपकब्श, उर्गक, साथी सत्र निकट हैं, बैसे दी उन सचित्त अचित्त चस्तुबोक। 'वात फिया पर धूलसे नहीं ज्ृथपश्र हुआ क्योंकि तेलका जो मदन है. वही चंयका कारण था, 'अब इसके नहीं है । इसी तरह सम्यदृष्टि जीच घ्यपने 'सापकी उपयोग भूमिमे रागादिकको नहीं ला रहा है तो देखिय वही तो जगह हे जहाँ कर्म व्याप्त है, उसी जगह रह रहा है, चहाँ ही सन, बचस, कायकी क्रिशच्माकों कर रद है और अनेक पदार्थोका संचय है, शस्त्र लिए बहुतसा परिकर हे 'पोर उसी प्रकार सचित्त चित्त वस्तुवोका उपघात हो रहा है, पानपचक नहीं किन्तु द्रव्य से । फिर थी वन्थ नहीं है. । व्यास इक अताप-सैया ! कथनकों परखिये-यह द्रव्यानुयोगका कथस है इससें छनन्नानुभभीके बधघको वध कहा है ्औौर 'वुद्धिपूर्वक जो हैं उनको इस दप्टिसि नहा लिया है, क्योंकि रागस जो राग है चहद एसा वन्थन है कि इसको ससारम बावे रहता है । जब रागमे राग नहीं रहता, मिथ्यात्वभाव नहीं रदता त॑। उसका बन्धन निदृत्तिपरक वन्धन समझों । जैसे कोई तेज दौड़ रहा हैं योर उसी तेज टोडनेके अन्दर ही किसी समय यह ख्याल आए दि; मुझे उस तरफ नहीं जाना है, सेरा तो अभी वद्द काम करनेको पढ़ा है तो उस सेज शोड़ानसे कोई पाव फर्लाह्न दौड करके दी बह्द रुक पायगा, मगर इस शानके चाद जो दौड़ है उसमें शिथिलता दोगई । इसी प्रकार सम्यम्टप्टिका जो उपयोग है, कर्मबिपाकयश यद्द भी कुछ अंशोमे चलित विचलिन ढो जाना है, उपयोग 'अन्यत्र लगता भी है, पर उसके वियोगवुद्धि रहती हैं । य£ परने योग्य नहीं है, इससे हस कब अलग दो जायें रेसी अतीति होमक कारण उसमें बंधन नहीं माना है। हम वहद्दॉपर बन थो नहीं सानत कि जब दहद गहरा विचार करले उसी समय उसी चीजको छोड़ सकता । देखा नो मैया । चही तो लोक है, वही कर्म है श्औौर वही करण उपकरण है जैसा ही चेतन झचेतनका उपादान है फिर थी यह सम्यग्दृघ्टि जीच नयूवि रागारिक सावोंको अपनी उपयोगभूमिसे नहीं ला रद है अथोत्‌ उपयोगसे रागाको नहीं बसाये हुए है तो वह बंधको प्राप्त नहीं होता है । जिस+,/ रंग उसको उपयोगभूमिमें वाप्त- जैसे किसी पुरुपका कोई इष्टतम रुजर जाय ना उस बड़ा क्लेश होता है और तब उसकी उपयोगभूमिसे वह्दी यरुप रारवदिन बना रहता है जिसका चियोग दुष्झा है. ऐसे पुरुपको रिस्तेदार




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