नारी शिक्षा | Nari Shiksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ठश्ष्मी-रुषिमणी संवाद
एक दिन रुक्मिर्णीदेवी श्रीन्दमीजीसे मिछने बैकुण्ठमें गयीं |
परस्पर अनैफ पिम्योंमें चर्चा होने लगी | वातों-ही-बातोंमिं रुक्मिणीजीने
प्र, 'देवि | तुम किन खियोंके पाप सदा रहती हो; तुम्हें कैसी
छियाँ प्यारी हैं, रिन उपायोंसे लिये तुम्हारी प्रीतिमाजन वन सकती
हैं १ लक्ष्मीजी हँसफर कइने लगीं--
जिस खीकी अपने खामीमें अचच भक्ति है, वदद मुझको सबसे
ज्यादा प्यारी है, में उसे पचभर भी अपनेसे अठग नहीं कर सझती ।
ऐसी लियोंके पास रहनेसे मुझे हर्ष होता है । मैं उनके सत्स्फी
इच्छा करती हूँ और सदा उनके साय रहती हूँ । और सब्र गुण
हनेपर भी जिस ख्रीकी अपने पतिरमें श्रद्धा नहीं है, उसे में
घिक्ारती हूँ ओर अपने पास नहीं आने देती !
जो सी क्षमाशील है यानी अपराध करनेत्रालॉफो भी क्षमा कर
देती हैं, उसके घरमें में रहती हूँ ।
सदा सच बोलनेवाठी खी मुझे पिशेष प्यारी है; सरल खभायफी
ख्री ही मुझे पा सकती है | जो ख्री छल-कपट-चाछाकीसे दूसरॉंफो
ठगती है; जो झूठ बोलती है, उसे मैं धिक्कारती हूँ और कमी
दर्शन भी नहीं देती |
जो लियाँ पत्रित्र रहती हैं; शुद्ध आचरणवानी हैं, देता घर
दिद्वान् जाह्मणेमिं भक्ति रखती हैं, पतित्रतधर्मकां पावन करती हैं,
अतिथि-सेयाफे लिये सदा तैयार रहती हैं, वे मुझको जल्दी पाती हैं ।
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