नारी शिक्षा | Nari Shiksha

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Nari Shiksha by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ठश्ष्मी-रुषिमणी संवाद एक दिन रुक्मिर्णीदेवी श्रीन्दमीजीसे मिछने बैकुण्ठमें गयीं | परस्पर अनैफ पिम्योंमें चर्चा होने लगी | वातों-ही-बातोंमिं रुक्मिणीजीने प्र, 'देवि | तुम किन खियोंके पाप सदा रहती हो; तुम्हें कैसी छियाँ प्यारी हैं, रिन उपायोंसे लिये तुम्हारी प्रीतिमाजन वन सकती हैं १ लक्ष्मीजी हँसफर कइने लगीं-- जिस खीकी अपने खामीमें अचच भक्ति है, वदद मुझको सबसे ज्यादा प्यारी है, में उसे पचभर भी अपनेसे अठग नहीं कर सझती । ऐसी लियोंके पास रहनेसे मुझे हर्ष होता है । मैं उनके सत्स्फी इच्छा करती हूँ और सदा उनके साय रहती हूँ । और सब्र गुण हनेपर भी जिस ख्रीकी अपने पतिरमें श्रद्धा नहीं है, उसे में घिक्ारती हूँ ओर अपने पास नहीं आने देती ! जो सी क्षमाशील है यानी अपराध करनेत्रालॉफो भी क्षमा कर देती हैं, उसके घरमें में रहती हूँ । सदा सच बोलनेवाठी खी मुझे पिशेष प्यारी है; सरल खभायफी ख्री ही मुझे पा सकती है | जो ख्री छल-कपट-चाछाकीसे दूसरॉंफो ठगती है; जो झूठ बोलती है, उसे मैं धिक्कारती हूँ और कमी दर्शन भी नहीं देती | जो लियाँ पत्रित्र रहती हैं; शुद्ध आचरणवानी हैं, देता घर दिद्वान्‌ जाह्मणेमिं भक्ति रखती हैं, पतित्रतधर्मकां पावन करती हैं, अतिथि-सेयाफे लिये सदा तैयार रहती हैं, वे मुझको जल्दी पाती हैं ।




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