साहित्यकी उपकमणिका | Sahityaki Upkamnika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द् साइदित्यकी उपक्रमणिका
ब्ल्न्ाप्च् सा ज्लभध्ाप्ाप्प् पापा
जनरपनपकपट्थ्ल वध बस ड्फ
समस्त जगत् दाब्दाथमय है, और कुछ नहीं । दाय्दकी
महिमा बढ़ी विचित्र है । दाब्दके बिना जगत्का कुछ काम
डी नदीं चल सकता | आाचाय्य दण्डीने कद्दा हैः--
इदमन्घं तमः कृत्ख्े जायेत अुवनजयम् ।
यदि शब्दाहयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ॥
अथोत् यदद सम्पूण जगत् अन्धकारमय--व्यवद्दारशूल्य--
हो जाता, यदि दाब्द नामक ज्योति ने जगमगाती दोती ।
यह बात बिलकुल ढीक हे । मचुप्य दी नहीं, पटुओं और
पश्षियोंका भी दाव्दका डी आशय लेना पड़ता है । सब कोई
दाब्द् द्वारा अपने भाव दुसरोंके प्रति प्रकट करते हैं।
मनुष्य जिन शब्दों का व्यवहार करता हे, उन्हें व्यक्त कहते
हैं । पद्ु-पश्चियों के शब्द अव्यक्त हें; क्योंकि वे मनुष्योंकी
समझमें नहीं भ्ाते । व्यक्त दाब्दोंसि दी भाषा बनती है । पे
दाब्दोकि समूदका ही नाम भाषा है |
किसी-किसीका मत है कि भाष। को इंश्वर ही पैदा करता
है। और सभी पदा्थोंकी तरदद भाषा भी उसीकी रचना है।
दूसरे लोगांका कहना है कि नहीं, भाषाकों इश्वरन नहीं
बनाया । यह तो मनुष्योंकी अपनी सष्टि है । मजुष्य ही धीरे
धीरे भाषा बनाते हैं। जो भी हो, इन बातोंके विस्तारमें
पढनेकी यहीं जरूरत नहीं । हर्भ केवल इतना जान लेना
चाहिए कि भाषा भी पैदा होती है, भले ही इसका पैदा
करनेवाला कोइ भी क्यों न दो ।
जो वस्तु पैदा होती है, चह बृद्धि-झतिशील हुआ करतीं
है। भाषाकी भी यददी दशा दे । कोई भी भाषा अपने बाल्य
कालमें बिलकुल छोटे रूपमें होती है । उसके सब अड्ञ-
प्रत्यज् छोटे-छोटे दोते हैं, और घड़े कमजोर । उसके किसी
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