साहित्यकी उपकमणिका | Sahityaki Upkamnika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahityaki Upkamnika by किशोरीदास वाजपेयी - Kishoridas Vajpayee

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about किशोरीदास वाजपेयी - Kishoridas Vajpayee

Add Infomation AboutKishoridas Vajpayee

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द्‌ साइदित्यकी उपक्रमणिका ब्ल्न्ाप्च् सा ज्लभध्ाप्ाप्प् पापा जनरपनपकपट्थ्ल वध बस ड्फ समस्त जगत्‌ दाब्दाथमय है, और कुछ नहीं । दाय्दकी महिमा बढ़ी विचित्र है । दाब्दके बिना जगत्‌का कुछ काम डी नदीं चल सकता | आाचाय्य दण्डीने कद्दा हैः-- इदमन्घं तमः कृत्ख्े जायेत अुवनजयम्‌ । यदि शब्दाहयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ॥ अथोत्‌ यदद सम्पूण जगत्‌ अन्धकारमय--व्यवद्दारशूल्य-- हो जाता, यदि दाब्द नामक ज्योति ने जगमगाती दोती । यह बात बिलकुल ढीक हे । मचुप्य दी नहीं, पटुओं और पश्षियोंका भी दाव्दका डी आशय लेना पड़ता है । सब कोई दाब्द्‌ द्वारा अपने भाव दुसरोंके प्रति प्रकट करते हैं। मनुष्य जिन शब्दों का व्यवहार करता हे, उन्हें व्यक्त कहते हैं । पद्ु-पश्चियों के शब्द अव्यक्त हें; क्योंकि वे मनुष्योंकी समझमें नहीं भ्ाते । व्यक्त दाब्दोंसि दी भाषा बनती है । पे दाब्दोकि समूदका ही नाम भाषा है | किसी-किसीका मत है कि भाष। को इंश्वर ही पैदा करता है। और सभी पदा्थोंकी तरदद भाषा भी उसीकी रचना है। दूसरे लोगांका कहना है कि नहीं, भाषाकों इश्वरन नहीं बनाया । यह तो मनुष्योंकी अपनी सष्टि है । मजुष्य ही धीरे धीरे भाषा बनाते हैं। जो भी हो, इन बातोंके विस्तारमें पढनेकी यहीं जरूरत नहीं । हर्भ केवल इतना जान लेना चाहिए कि भाषा भी पैदा होती है, भले ही इसका पैदा करनेवाला कोइ भी क्यों न दो । जो वस्तु पैदा होती है, चह बृद्धि-झतिशील हुआ करतीं है। भाषाकी भी यददी दशा दे । कोई भी भाषा अपने बाल्य कालमें बिलकुल छोटे रूपमें होती है । उसके सब अड्ञ- प्रत्यज् छोटे-छोटे दोते हैं, और घड़े कमजोर । उसके किसी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now