छेद सुत्ताणि [कप्पसुत्तं] | Chhed Suttani [Kappasuttam]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chheda Suttani [Kappasuttam] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ७. ] वह पु पणाकल्प होने से लघु कल्प है । उसकी अपेक्षा से जिसमें साधु-मर्यादा का वर्णन विस्तृत हो, वह बृहत्कल्प कहलाता है । इसमें सामायिक, छेदोप- स्थापनीय और परिह्ारविशुद्धि इन तीन चारित्रों का सामान्य रूप से विधि- विधानों का वर्णन है । वृहुत्कल्प शास्त्र में जो भी वर्णन है उन सबका पालन करना उक्त चारिघ्रशीलों के लिए अवश्यंभावी है । विविध सूत्रों द्वारा साधु साध्वी की विविध मर्यादाओं का जिसमें वर्णन शिया गया है, उसे वृहत्कल्प सुत्र कहते है । प्राकुत भाषा में विहक्कप्पसुत्तं रूप बनता है । निश्चयधर्म और व्यवहारधर्म निश्चय और व्यवहार ये--दोनों एक दूसरे के पूरक एवं पोपक हैं । निश्चय सम्यक्‌ होने से व्यवहार भी सम्यक्‌ होता है निश्चय के बिना केवल व्यवहार व्यवहाराभास ही है । यदि व्यवहार की धर्म का शरीर कहा जाए तो निश्चय घर्म की आत्मा है । निश्चय धर्म निश्नत्ति-प्रधान है जबकि व्यवहार घर्म प्रवृत्ति-प्रधान, इनको क्रमश: आस्तरिक आचरण भौर वाह्म-आचरण भी कहा जा सकता है । शरीर के भीतरी भाग में रक्त संचार, फेफड़ों में प्रकम्पन हृदय में गति इत्यादि क्रियाएँ जीवन के लिए जैसे आवश्यकीय हैं, बसे ही शरीर के बाह्म भाग में त्वचा भी शरीर की रक्षा के लिए आवश्यकीय है । उसके बिना भी जीवन रहना असम्भव है । प्रस्तुत सुत्र में दोनों का सम्मान संतुलित रखा गया है। निश्चयधर्म व्यक्तिगत है और व्यवह्ारघर्म लोक- कल्याण में सहयोग देता है । दोनों में से किसी एक को मानना और दूसरे का निषेघ करना वह एकान्तवाद है । एकान्तवाद केवल मिथ्यात्व है । उत्सगंमार्ग और अपवादमागं जिन नियमों का पालन करना सभी साधुओं और साध्वियों के लिए अनिवार्य है अथवा बिना किसी भेदभाव के सभी साधकों के लिए समान रूप से जिस समाचारी का पालन करना अवश्यंभावी है, शास्त्रीय एवं श्रमण संघीय समाचारी का पालन प्रामाणिकता से करना उत्सर्ग-मार्ग है । इस मार्ग में प्रगति करने वाला साघक प्रणंसनीय एवं श्रद्धय बनता है । अनुशासन के पालन में सदैव सतर्क रहना ही इसकी उपयोगिता है। निर्दोष चारित्र की भाराधना करना ही इस मार्ग की विशिष्टता है! सर्वआाराधक इसी मार्ग पर चलने से बनता है । इस मार्ग में अप्रमत्ततता बनी रहती है । अपवाद का अथे इस प्रसंग में विशेष विधि है । वह दो प्रकार की होती हैं--निर्दोष-विशेष विधि और सदोष-विशेष विधि । सामान्य विधि से विशेष विधि बलवान होती




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now