प्रवचनसार प्रकाश | Pravachansar Prakash
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कुन्दकुन्दाचार्य - Kundkundacharya
No Information available about कुन्दकुन्दाचार्य - Kundkundacharya
वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल - Vaidya Prabhudayal Kasliwal
No Information available about वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल - Vaidya Prabhudayal Kasliwal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' प्रवंचनसार प्रकाश हु
क्षायिक ज्ञान का लक्षण--
युगपतु , श्रात्म प्रदेशों से, विषम विचित्र द्रव्य जाने ।
तात्कालिकं श्रौर धन्य सभी 'को, क्षायिक ज्ञान उसे माने” ॥47।॥।
एक साथ तोन लोक तीन काल के दव्यों को एक साथ न जानने वाला एके इ्ंवय भी
पर्याय सहित नहीं जानता--
जो नहीं जाने युगपतु सारे तीन काल के द्रव्यों को ।
जान सके नहीं वह जग में पर्याय सहित एक को भी ॥481॥ ..
इव्य की श्रनन्त जाति है एक द्रव्य को झ्नन्त पर्याय है । इनको केवली एक साथ
जानते हैं”.
प्रनन्त पर्यायी श्रात्म द्रव्य को द्रव्य समूह अचन्तों को ।
जो युगपत् नहीं जाने कोई, वह॒कसे जाने सबको ।1491।
झात्मज्ञान परावलम्बी नहीं है- / ४
. झात्मज्ञान उत्पन्न यदि हो, क्रमश: पदाथें श्रवलम्बन ले । न
तो वह क्षायिक नित्य नद्दीं है श्ौर सवेगत भी नहीं रे ॥1501।
जिनवर के ज्ञान की सहिमा--
तीन काल के सदा विषम जो स्व क्षेत्र के विविध पदाथे ।
जिनवर युगपतु ज्ञान से जाने, ज्ञान की महिमा झपरम्पार ॥511।
ज्ञानी श्रात्मा द्रव्यों का केवल ज्ञाता दृष्टा होता है द्रव्य रूप परिणमन नहीं करता
रत: बन्घ नहीं होता--
जानता हुमा सभी द्रव्यों को परिणमे नहीं झात्म.उस रूप ।
ग्रहण श्रौर उत्पन्न न. करता श्रतः श्रबन्घक उसका - रूप -1॥152।।
ज्ञान श्रौर सुंखको हेयोपादेयता का वरंन करते हैं-
पदार्थ सम्बन्धी ज्ञान भ्रतीन्द्रिय ऐन्द्रिय मु्ते असुर्ते तू जान । ' '
इसी तरह से सुख भी होता, उपादेय उत्कृष्ट प्रधान ॥5311
प्रत्यक्ष ज्ञान को परिभावा--
दर्शक का जो ज्ञान, अमुर्ते को सूर्तों में भी श्रतीन्द्रिय को.।
प्रच्छन्न सकल स्व पर को देखे, प्रत्यक्ष कहो उस शान ही को ॥841।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...