अवतारवाद मीमांसा | Avtarvad Mimansa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अवतारवाद मीमांसा  - Avtarvad Mimansa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

Add Infomation AboutSwami Dayanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
झवतारधाद मीमांसा । श्पू कलीनरभययरथचफजीजपलथतफथलपकलथलय: लिप, कजधथतथतथातपथलकतपरिरथ ने मेरा शिर वाट लिया था झौर मदादेव का लिंग शाप से गिर पड़ा था, बैसेद्दी राज विष्णु का शिर कटकर सप्ुद् में गिर गया! इन्द्रको खदस्र भगकी प्राप्ति हुई । वे स्थर्ग से पतित हुये शरीर मावसरोवर में कमल में घास किया । ये सब दुग्ख के भोक्ता हैं । हुःख कौन नहीं मोगता है ? झस्तु देवी के कहने से देवता लोग एक घोड़े का श्र लाये और व्वष्टा नाम शिद्पीको दे दिया । उसने उस सरको धिष्णु के सर से जोड़ दिया और विष्णु भगवान ज्ञो उठे । इससे उनका नाम हयप्रोव पढ़ा 1 पक बार विष्णु के पास लकेमी बठी थीं। उनके मुख को देखकर विष्णु बड़े जोरसे हँसे, लक्ष्मी बड़ी नाराज़ हुई । झ्ीर घोरे से कद कि दुन्दारा शिर गिर जाय । उन्हीं के शाप से उनका शिर कटा था अब भापलोग यदां देखते हैं कि विष्णु जो मर कर जी उठे हैं । वे सुख हुए के सोका हैं उन्हें भी शुभ झशुम कर्म का फहा भोगना पढ़ता दै। ये सब लक्षण जीव के हैं या ईएवर के हैं इसे पाठक स्वयं समकतें । इसमें झधिक बुदि लगाते फो घ्ावश्यकता नहीं । इस कथा से मी थे जीच विशेष दी ठदरते है ईश्वर नहीं ! विष्णु सगधान ब्रह्म का ध्यान करते हैं।-- दे० मा सुकत्द १ झा०् प्राह्मा इरस्त्रयो देवा ध्यायन्तः कमपि श्रुवमू । विध्णुश्चरत्यसाघुप्र॑ तपो घर्षोएयनेकश: ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now