नवीन व प्राचीन वेदांत | Naveen Va Prachen Vedant

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Naveen Va Prachen Vedant by बुद्धिसागर वर्म्मा - Buddhisagar Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[३] अजामेरं लोडित शुक्त कृष्णां वही: -पजा: सजमाना स्वरूपा: । अजोद्यको जुपमाणों 5नुशेते- जददात्येनां भुक्त भोगामजों उन्य: ॥ _ क की इचेताइवतर उ० झा ४ | में० £ (झर्थ) ''पएक झजन्य पदार्थ हैं, जिसमें लोहित (रजोणुगा ) शक्क ( सवोगुण ) शोर कृष्णा ( तमोगुण ) पाये जाते हैं । इऔर वह जगत्‌ का स्वरूप से कारण ध्र्थात्‌ उपादान कारया है अ्यौर' उससे यह नाना प्रकार की सयोगज शौर साकार यस्तुयें प्रादुसूत डुई हैं। इसके भतिरिक्त एक आर 'सत्‌”” है, जो इसके भीतर रद कर इसके फलों-को सोगता है । इन दो “खत” सत्ताओं के श्यतिरिक्त' पक तीसरा “'सत्‌”” भौर है, जो उसमें रदने पर भी उसके फलों को नहीं भोगता ।”” इस श्रुति से पता लगा कि 'सत्तु”” तीन हैं। पक तो जिगुणात्मक “प्रकृति” है । दूसरा प्रछृति में रहकर उसके फलों का भोक्ता 'जीच' है ।_ झौर तीसरा प्रछृति में व्याप्त ध्यौर उसके भोगों से ्र्ग रहनेराला “ब्रह्म” है ।. जब इस भ्ुति से पता लग गया कि सत्‌ तीन हैं, तो ल्नण यह्द हुआ कि ब्रह्म सत्य शोर ज्ञानवाला है । ब्रह्म को चेतन '्र्थात्‌ शानवात्ता कददने से प्रकृति तो अलग दोगई, किन्तु जीव जो सत्‌ू छोर श्ञानचाला भी है साथ रहा । इससे ब्रह्म का लक्तण पूरा न छुध्ा 1_ झतः झ्नत में कहा कि ब्रह्म झामन्द्वाला है जा प्रकृति झौर जीव दोनों में न था | झ्ततःः हम का स्वरूप लक्षण सच्चिदानन्द हुच्पा । प्राचीन वेदान्त में जहाँ त्रह्म को सच्चिदानन्द ध्मौर जीव को घड्चित्‌ पचे प्रति को सत्‌ माना था, चह्ाँ नवीन वेदान्तियों




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