महाभारत भाग - ५ | Mahabharat (vol - V)

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Mahabharat (vol - V) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा भ्रष्याय श दूसरा श्रष्याय कण का आस्फालन सेज्नय कहने लगे--द राजन्‌ ! श्रगाध सागर में उ्तटी हुई नौका की तर भीष्म फा मारा जाना सुन, श्रधिरथ-नन्दन कर्ण श्रापके पुत्रों तथा समस्त फौरव-सेना को सछट से उयारने के लिये सष्टोदर भाई की तरद झा पहुँचा । शात्ुसन्तापकारी तथा धघनुघेरश्रेष्ठ फ्ण ने जब सुना कि, पुरपेन्द्र एवं घदय्य यीर मदारथी शान्तजुपुत्र भीष्म युद्ध में सारे गये, तब वे हंसते हुए तुरन्त 'प्रापकी सेना में था उपस्थित हुए । शत्रुशनों के द्वारा भीष्म के मारे जाने पर, फर्ण विपत्तिरूपी सागर में निमम घापके पुत्रों शौर '्रापकी सेना को पार करने के लिये नौका बन, वैसे ही श्रा पहुँचे; जैसे पुत्र को पिपत्ति में पड़ा देव, पिता उसकी रक्ता करने को था जाता है । कर्ण ने भरा कर फदा--जिन सदैव फतक्ञ थीर घ्राह्मणों के शत्रुझों का संदार करने वाले भीष्म पितामद में थैय, बल, घुद्धि, प्रताप, सत्य, धारण-शक्ति शादि वीरोचित समस्त शुण, परशेप दिव्यासर, विनय, लजा, प्रियवाणी 'घर शट्टेष आदि सदा से वैसे ही विद्यमान थे, जैसे चन्द्रमा में चन्द्लाल्दन चिन्ह सदा से विद्यमान है; वे ही शतुवीरों के मारने वाले भीष्म जी जब मारे गये, तय मैं घ्न्य समस्त वीरों के शसुतक हुआ दी समझता हूँ। इस संसार में कोई भी वस्तु नित्प-स्थित-शील नहीं है। जब देवब्रत भीष्म नी ही मारे गये, तब थाज कौन मजुप्य झंगले दिन तक जीवित रहने का विश्वास कर सकता है ? दे मनुष्यों | चसु के समान प्रतापी और चसु के वीर्य से उत्पन्र, चसुन्धराधिपति भीष्म जब- वसुलोक का चले गये; तब तुम लोगों का श्र्थ, पुत्र, ्थिवी तथा कुरुओों की सारी सेना के लिये निश्चय ही शोक करना पढ़ेगा । *. - थ सज्ञय बोले--दे छतराष्ट्र ! मददाप्रतापी घर महातेजस्वी भीष्म के मरने आर कौरवों की सेना के पराजित होने पर, कण पूर्वोक्त दचनें को कहते कहते




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