देश - दीपक | Desh Deepak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1
चुद्धरे . ट
एक दिन सौतम पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाये वेठें थे ।
उसी समय समीप के भूस्वामी की पन्नों सुजाता वहाँ पहुँची ।
उसने मन्नत सानी थी कि पुत्र दोने पर में वन-देवता को खीर
खिलाऊँंगी । वही सन्नत पूरी करने के लिए वदद पायस लेकर
झपनी सखी पराणा के साथ वन मे पहुँची । उसने गौतम को
ध्यान में मभ्न वैठे देखा । समा कि मेरी पूजा अ्रहण करने को
वनदेव प्रकर दो गये हैं । वड़ी श्रद्धा से उन्हें पायस झार्पित की
गौतम ने उसे स्वीकार किया । उसके खाने से उनकी देह में चल
झाया । फिर वे पद्मासन लगा कर उसी पीपल के नीचे ध्यान
करने लगे । उन्दोंने पका निश्चय किया--चाहें मेरी खाल, नसें
'र दृड्ियों नप्र हो जायें; चाहे सारा रक्त और सांस सूख जाय
किन्तु मे यहाँ से तभी उदगा जब मुझे पूरा ज्ञान दो जायगा ।
उनका मन एकाय्र हो गया 1 उस समय एक साथ सी गाजों
( बंज्चो ) के गिरने की घोर ध्वनि होती तो भी उनका ध्यान न
टटता । इसी घीच उनके मन को विकारों वा चासनाश्रो ने अः!
घेरा । उसके ऊपर 'सार' ने ध्याक्रमण किया । गोतम का मन
शान्त रहा । चह्द 'मार' वी प्रेरणा से उत्पन्न विविध वासना सों से
न डिगा। 'मार' हार गया । घापना सा मुंह ले कर चला गया |
उस दिन वेशाख की पूर्णिमा थी । उसी दिन सिद्धार्थ को ज्ञान
हुआ । उन्होंने कद्दा--
इस संसार में श्पनेक जन्म ले कर में ्रमणु करता निरन्तर
(शरीर रूपी ) यूद-कारक लो टू ढता 'और चार-चार ( जन्म लेने
का ) दुम्ख सहता रहा । 'अच सुमे चट यूदद-हारक दिखलायी पड़
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