मड़वालीकी रामायण कृपकन्याकाण्ड (१) | Madwaleeki Ramayan Kripkandhakand (i)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
614
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(३)
ग्रे वाचयतहि प्रभल्लनसुते तत्त्व सुनिभ्य: पर
व्याख्यान्त॑ भरतादिमि: परि तं रास भजे श्यामलमू ॥१३।
नर न न
माध्वसस्परदाय ँ
शुकलाम्बरघरं विष्ण' शशिवरएं चतुभुजम् ।
प्रसन्नवदूनं ध्यायेत्सवंतिध्नो पशान्तये ॥१॥
लदमीनारायणं बन्द तद्धक्तप्रवरो दि यः ।
श्रीमदानन्दतीर्धाख्यो शुरुस्त च नमान्यदसू ॥९॥।
वेदे रामायसे चैब पुराणे भारते तथा ।
आदावन्ते व मध्ये च विष्णणु” सचत्र गीयते ॥३॥
सवोविघ्नश्रशमनं सवेसिद्धिकर' परम् ।
खर्वजोवप्रणेतार वन्दे विज्यदं हरिमू ॥४॥।
स्वांभीष्टप्रद राम सवारि्रनिवारकमू ।
जानकी जानिमनिशं वन्दे मदुरुरुव न्दितम्ू १४॥
अश्रमं भज्नरदितिमजढं विमल सदा ।
आनस्दतीथंसतुलं भजे तापनयापहदमू ॥६॥।
भवति यद्छुभाबादेदमूको ५ पे चाग्सी
जडसतिरपि जन्तुजांयते मात्तमोलि: 1
सकलचचनचेतो देवता भारती सा
मम चचसि विधत्तों सन्निधि मानसे च 11७!)
सिधथ्यासिद्धान्तटध्वान्तविध्व॑ंसनविचक्षण:
जयतीथाख्वतर्राणभासितां नो हदस्वरे ८1.
जननककल गा नयझवनााा हा कल लग पिच पं. हे. हि आना कायल ही
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