मड़वालीकी रामायण कृपकन्याकाण्ड (१) | Madwaleeki Ramayan Kripkandhakand (i)

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Madwaleeki Ramayan Kripkandhakand (i) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बललकलीन कर पथ . का न (३) ग्रे वाचयतहि प्रभल्लनसुते तत्त्व सुनिभ्य: पर व्याख्यान्त॑ भरतादिमि: परि तं रास भजे श्यामलमू ॥१३। नर न न माध्वसस्परदाय ँ शुकलाम्बरघरं विष्ण' शशिवरएं चतुभुजम्‌ । प्रसन्नवदूनं ध्यायेत्सवंतिध्नो पशान्तये ॥१॥ लदमीनारायणं बन्द तद्धक्तप्रवरो दि यः । श्रीमदानन्दतीर्धाख्यो शुरुस्त च नमान्यदसू ॥९॥। वेदे रामायसे चैब पुराणे भारते तथा । आदावन्ते व मध्ये च विष्णणु” सचत्र गीयते ॥३॥ सवोविघ्नश्रशमनं सवेसिद्धिकर' परम्‌ । खर्वजोवप्रणेतार वन्दे विज्यदं हरिमू ॥४॥। स्वांभीष्टप्रद राम सवारि्रनिवारकमू । जानकी जानिमनिशं वन्दे मदुरुरुव न्दितम्‌ू १४॥ अश्रमं भज्नरदितिमजढं विमल सदा । आनस्दतीथंसतुलं भजे तापनयापहदमू ॥६॥। भवति यद्छुभाबादेदमूको ५ पे चाग्सी जडसतिरपि जन्तुजांयते मात्तमोलि: 1 सकलचचनचेतो देवता भारती सा मम चचसि विधत्तों सन्निधि मानसे च 11७!) सिधथ्यासिद्धान्तटध्वान्तविध्व॑ंसनविचक्षण: जयतीथाख्वतर्राणभासितां नो हदस्वरे ८1. जननककल गा नयझवनााा हा कल लग पिच पं. हे. हि आना कायल ही




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