चन्द्रगुप्त मौर्य्य | Chandragupt Maurya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 हुई होगी क्योंकि १८३ में सोमशर्स्मा मगघ का राजा हु । भट्टियों के प्रंथों में लिखा है कि मौय्यफुल के मूलवश से उत्पन्न हुए परमार नूपतिगण ही उस समय भारत के चक्रवर्ती राजा थे और वे लोग कभी- कमीं उज्जयिनो मे ही अपनी राजधानी स्थापित करते थे । टाढ ने श्रपने राजस्थान में लिखा है कि जिस चदगुप्त की महान्‌ प्रतिष्ठा का वर्णन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा है उस चढ्रगुप्त का जन्म प्वॉर कुल की सौय्य शाखा में हुआ है । सम्भव है कि विक्रम के सो या कुछ वर्ष पहले जब सोय्यों की राजधानी पाटलीपुत्र से टी तब इन लोगों ने उज्जयिनी को प्रधानता दी श्रोर वही पर अपने एक भादेशिक शासक की जगह राजा की तरह रहने लगे। राजस्थान में पवॉर कुल के मोय्य नुपतिगण ने इतिहास में प्रसिद्ध बड़े बड़े कार्य किये किन्तु इंसा की पहली शताब्दी से लेकर ४ वी णताब्दी तक घाय उन्हें गुप्ततशी तथा अपर जातियों से युद्ध करना पड़ा । भट्टियों ने लिखा है कि उस समय मोय्य कुल के अमार लोग कभी उय्जयिनी को श्रौर कभी राजस्थान की यारा को श्रपनी राजधानी चनाते थे । इस दीर्घकालत्यापिनी श्रस्थिरता में मौय्य लोग जिस तरह ध्रपनी प्रभुत्ता बनाये रहे उस तरह किसी वीर श्रोर परिश्रमी जाति के सिवा दूसरा नहीं कर सकता । एसी जाति के महेश्वर नामक राजा ने विक्रम के ६०० वूष॑ वाद कौर्तिवीय्याजुन की प्राचीन महिष्मती को जो नमंदा के तट पर थी फिर से वसाया श्रौर उसका नाम मद्ेश्वर रखा उन्ही का पोन्र दूसरा भोज हुआ चित्राज मोय्य ने भी थोड़े ही समय के झन्तर




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