महाबली दत्तू जमखंडीकर | Mahabali Dattu Jamakhandikar

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Mahabali Dattu Jamakhandikar by शन्भुनाथ सक्सेना - Shambhunath Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झा आए थे उनसे उन्हों रे अग्रिम वेतन लिया । नौकरी के साथ-साथ ही उन्होंने धन उपार्जन की एक नई तरकीब खोज निकाली । हमारे नगर के मुख्य» मुख्य नागरिकों और प्रदाधिकारी-दर्ग की एक सूची टाइप करवाई । और सूची के हरेक व्यवित के पास जाकर उन्हों है कहा-* *' बड़ी मुसीबत में, में फंस गया हूं । में ठहरा परदेसी आदमी 1 में कया जानत! था कि अपपके दाहुर में ऐसे-ऐसे आदमी भी मौजूद हूं ? देखिये, यह लिस्ट हमारे पत्र के मालिंक ने दी है, कि इन लोगों के विरुद्ध पत्र में लिखना आरम्भ किया जाये ।” फिर नकारात्मक ढंग से सिर हिलाते हुए बीले-- न साहब न, अपने से यह गन्दा काम नहीं होगा । मर्ज॑बूरी हैं कि इतने भी पैसे नहीं हैं कि यहां से दिल्‍ली भी जा सकू । और इस विवद्यता के कारण अपना ईमान बेचना पड़ रहा हे । अगर आप ५०) रु० दे दें तो . इस नरक से मुक्ति पालू | मुझसे अप जैसे सज्जन व्यक्तियों के विरुद्ध एक दान्द भी नहीं लिखा जाएगा ।”' और हमें परिचितों ने बतलाया कि इस तरह बेरंगजी हमारे नगर से एक लम्बी रकम “चौथ” के रूप में लोग-ब.गों से वसूल कर लेगएं | खर साहब, यह तो उनके जीवन की सामूली-सीं घटनाएं हैं जो सम्भवत: उनके समक्ष कोई महत्व न रखती होंगी । क्योंकि नित नए प्रयोगों के जीवन में ऐसीं धंटताओं का निर्माण हो जाना बेरंगजी जैसे ब्यवित्तयों के लिए कोई अताघारण बात नहीं है; लेकिन हमें तो खरहें देखकर




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