भामती : एक अध्ययन | Bhamati Ek Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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् भामतीकार : परिचय मिधिला जनपद की पावन धरा ने वाचर्पति नाम के कई देदाघंवेत्ता, शास्त्रनिष्णात, दर्शन-मनीषी विद्वानों को जन्म दिया है, जिनमें तोन अत्यन्त प्रप्तिद हैं-(१) सर्वत्र स्वतस्त्र पदुदर्शन-टीकाकार वाचस्पति मिश्र, (२) खण्डनोदार ग्रथ के रचपिता बाचस्पति मिशन तथा (३) घर्मशास्त्रों के प्रब्याते ब्याव्याता वाचस्पति मिश्र ।* इनमें घद्दर्शन- टीकाकार प्रथम वाचस्पति मिश्र का ही प्रकृत प्रन्य से सम्बन्ध है। मत' परिचयात्मक इस प्रथम उन्मेप में उन्हीं के व्यक्तित्व एव कृतित्व का सप्षिप्त परिचय प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। देश बहेंमान विहार प्रात्ठ में नेपाल से सटा हुमा दरमगा मण्डल है। उसके मधुवनी सदहिविजन में शत्धराठाढ़ी नाम का एक गाँव है। यही वह गाँव है जिसे माचायें वादस्पति मिश्र ने अपने जन्म एवं सरस्वत्याराघन थे झतार्थ किया था । आाचायें के स्मारकों में से इस समय केवल एक “'मिसिराइन पोछरि' हो दिनमणि के समान अपने प्रभास्वर शानालोक से सर्वेदिशाओ को भास्वरित करने वाले दार्शनिक शिरोमणि के अदृश्य प्रतिविम्ब को अपने अम्तस्थल में समोये हुए है जिसको चपल करमियाँ दिकू-तटों पर आवदार्पप्रदर का जाज्वल्पमान इतिहास लिखती चली जा रही हैं--अनदेखी-सी अनजानो-सी । कहां जाता है कि इस “पोलरि' का खनने आचार्य वाचस्पति मिश्र की धर्मे-पत्नी “भिश्नानी' जो के नाम पर उनके जीवन-काल में किया गया था 1 काल सौभाग्य से स्वय आचार्य वाचस्पति मिश्र ने अपनी कृति “न्यायसुची निवन्ध' के अन्त में उसका रचनाकाल “वस्वकवसुवत्सरे” स्पष्टत नििष्ट किया है।* साकेतिक झाचा मे वसुपद* *८' सख्या का, अक “६ सब्या का सूचक माना जाठा है। इस प्रकार *६* सब्या अपने पूर्वे व उत्तर दो 'वसु' पदों हे निदिष्ट दो ८ से घिरी *८१८' सम्पन्न होती है। विपरोत गति से बकों का विन्पाठ करने पर भी ८६८ सब्या ही प्राप्त होती है । अद प्रशन इतना रह जाता है कि यह कोन-सा सवत्सर है । मुल पक्ति में 'वत्सर” शब्द




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