सिद्धों की सन्धाभाषा | Siddhon Ki Sandhabhasha

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Siddhon Ki Sandhabhasha by मंगल विहारी - Mangal Vihari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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०] सिद्धों को सचाभापा उध' <.. ऊदेव्य न की झादि स्वरों का दी्घीकरण सधघामापा में बा० भाग बा० के नादि अ उधा उस्दर कभा कप क्रम अपने दाघ रूप बा तथा ऊ मे परिवत्वित हा जात हूँ । चहा वादा यह परिवतन क्तिपुरक के नियम के अनुसार होता है और बहा वहीं स्वठज रूपम। च्तिपूरफ ोीकरण के नियमातुसार परियत्त॑नी पा परत सधाभापा वी यह विदपहा है कि हस्द बाटि तथा मध्यग स्वर के बात यदि सयुक्त व्यंजन रहन हैं, ता उनमे से एक यज लप्त हा जाना है तथा उत्तका श्ठि यू उ ५ रूप से उमा हस्व आति तथा सध्यम स्वर द घ हो जात हैं ।* शादि आं था * था सचघाभापा की बादि ला ध्वनि ० सा आ० की मे ध्वान को दा स्प है। जमे आाखि . <... बच्ि बागि <. अस्ि गाण < नये आगलि . <. अय झादि उ कर श दे वागचों दाहाकोग पू० १० प० है । २ दे० तगार पा;४१०४४८४! एवरफ्तशा ता हैतविपा स्ताइध8 पुठ रह तंगार ने इस प्रवृत्ति को अपन्र थय के केवल बादि स्व तेक हा सामित रखा है परन्तु से घासापा के सध्य्य स्वरों मे भी दस अवतिक उदोइरेण निलत हैं न दें० पहना. बौर यान दा० चर रै५1 ४ देश वहों चल 3) “ देन वहो च० ४४1 ६ दे० वटो च० ८ 1




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