मध्ययुगीन हिन्दी कृष्ण भक्तिधारा और चैतन्य सम्प्रदाय | Madhyaugin Hindi Krishna Bhaktidhara Aur chaitany Sampraday

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Madhyaugin Hindi Krishna Bhaktidhara Aur chaitany Sampraday by धीरेंद्र वर्मा - Dhirendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) वितकंनलानि ३४१, स्मृति-यास-कट्ता ३४३, प्रेम-विवशता २४४] पुररमिलन देश । द् छध्यायं ८: कि पर दि कि यू + लि के का कि क्र कप पु०.३४४६-रेपप “कला-पक्ष .. शंली-ारूपान शैली और उसके छन्द ३४६--पयार, चोपाई-वौपई, बोवोला ३५०, चौपाई-दोह्ा-सरवया ३४५१, रोला-दोहा ३४५१, दोंद्वा ३५२, दोहा-सोरठा, अरिल्ल-कुण्ड लिया ३४३, फवित्त-सरवया ३५३, दोहा का सुतन प्रयोग ३५४, पदर्शली : (बंगला) अक्षर वृत्त-पयार ३४५४; एकावली-आठ अक्षरी ३५६, दस अक्षरी 3४५६, एकादश अदारी रेश६; ध्रिपदी छवब्वीस अक्षर की दीघं भिपदी ३५६, वीस अक्षर की लघु घरिपदी ३५६, माशिक छत्द ३४५४५; चतुष्पदी झाठ- बारह-सोलह मात्रा रे५७, विपम चतुष्पदी--वारहे-सोलह मात्रा ३४५७, श्रिपदी--अदुठाइस माया 3५८, पच्चीस मात्रा ३५५८, तेईस मात्रा रे५८, दीप चतुष्पदी--संतालिस मात्रा ३५८, एक्यावन माथा ३४९, तोमर ३५९, हरिगीतिका ३४५९, पदपदाकुलक ३४५९, हिन्दी : मात्रिक छन्द ३५६, विष्णु पद ३६०, सार-सरसी ३६०, ताटखू २६३, कुण्डल-उड़ियाना ३६३, रूपमाला-शोभन ३६३, समान सवेया ३६४, विनय र६४, विजया ३६४५, श्रिपदी 9६४, वर्णवृत्त-भनहरण ३६६; मुक्तक शेली--दोहा ३६६, छप्पय २६७, कुण्हलिया ३६७, कविस २६७, सवया ३६७; अलख्ार-विधान : दाब्दालस्ार-अनुप्रास ३६८, पुनरक्ति-प्रकादा ३७०, मनुकरणात्मकता दे७१; अर्थालख्ार--उपमा ३७२, रूपक ३७३, रूपकातिदायोक्ति ३७४, उठ्प्रेक्ा २७५, प्रतीप-व्यतिरिक ३५६, सर्देह--अपछुति ३७८, सत्युक्ति ३७६, भाषा ३७९६--संस्कृतनिंष्ठ म्रजभाषा शेप०, राजस्थावी ३८०, गुजराती रेप है; पप्नावी २५१, उर्चू ३०१, स्ज- भाषा-सजबुलिका साम्य ३८१--पद ३८२, वचन ३८३, सर्वेनाम--- अस्मदू इंद४, युष्मदू-तद्‌ ३०४, यदू ३८६, कौन रेप ६, कोई ३८६; कारक र८६, प्रत्यय-अत्‌ ३०७, भये ३८७, इ रेष७, एनऐ रेप, द्प्ये पे८प ओ-भी ३८५८ ।




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